Wednesday 30 June 2010

वादों का सफ़र

तेरे वादों का सफ़र थमने लगा है ,मेरा दिल ये मुन्तज़र डर सा गया है।
ग़म चराग़ों का उठाऊं रात दिन मैं , पर हवाओं से तेरा टांका भिड़ा है ।
दिल वफ़ा के बरिशों से तर-ब-तर है, बे-वफ़ाई,तेरे दामन की फ़िज़ा है।
क्यूं हवस की गलियों मे तुम घूमती हो,सब्र का रस्ता सुकूं से जब भरा है।
मैं ग़रीबी की गली में ख़ुश्फ़हम हूं ,तू अमीरी कें मकां में भी डरा है।
चांदनी को चांद से गर प्यार है,तो ,आसमानी ज़ुल्मों से लड़ने में क्या है।
बिल्डरों का राज है अब इस वतन में, झोपड़ी का हौसला फिर भी खड़ा है ।
डूबना है हुस्न के सागर में मुझको , टूटी फूटी कश्ती है पर हौसला है।
क्रेज़ मोबाइल का है अब आसमां पे ,हाय चिठ्ठी पत्री की सांसें फ़ना है।

Thursday 24 June 2010

नामा

लिख मौत के नाम का नामा तेरे घर को ढूंढता हूं ,ग़म से भरा क़तरा हूं अपने समन्दर को ढूंढता हूं।
इक जीत कर जंग क्यूं दिल अभिमान से लबरेज़ तेरा, मैं भी शहंशाह पोरष हूं सिकन्दर को ढूंढ्ता हूं ।
अपनों की मेरी बुलंदी मेरे ही दम से आसमां पे , सबका मुकद्दर सजा अपने मुकद्दर को ढूंढता हूं ।
जब पास थी तवज्जो दे सका ना हमसफ़र को , जब जा चुकी दूर तो उसके तस्व्वुर को ढूंढ्ता हूं।
हमने बनाया जिन्हें जिनके कारण हमने की लड़ाई , यारो उसी बे-ज़ुबां मजबूर ईशवर को ढूंढ्ता हूं।
ज़र जाह ऐसा कमाया, रक्स रखता है ज़माना , अब चाह पाई सुकूं की तो कलन्दर को ढूंढ्ता हूं।
हर रात मैंने अंधेरों के दम से डकैती की दानी , घर में डकैती पड़ी तो मुनव्वर को ढूंढ्ता हूं।

नामा ॥ख़त॥ ज़र-धन॥ जाह-इज़्ज़त॥ रक्स-इर्ष्या॥ मुनव्वर -प्रकाशमान शय॥

Sunday 20 June 2010

बुलबुल

तेरे तस्व्वुर ने किया पागल मुझे ,कोई दवा भी है नहीं हासिल मुझे।
किरदार मेरा हो चुका दरवेश सा, अपनी खुशी की पहना दे पायल मुझे।
ज़ख्मों की बारिश से बचूं कैसे सनम,प्यारा है तेरी गलियों का दलदल मुझे।
कश्ती मेरी लहरों की दीवानी हुई , मदमस्त साहिल ने किया घायल मुझे ।
तेरी अदाओं ने मुझे मारा है पर , दुनिया समझती अपना ही क़ातिल मुझे।
या मेरी तू चारागरी कर ठीक से , साबूत लौटा दे, या मेरा दिल मुझे ।
झुकना सिखाया वीर पोरष ने मुझे, दंभी सिकन्दर,ना समझ असफ़ल मुझे।
मन्ज़ूर है तेरी ग़ुलामी बा-अदब , है जान से प्यारा तेरा जंगल मुझे ।
तू खुदगरज़ सैयाद ,दानी इश्क़ में, पर मत समझना बेवफ़ा बुलबुल मुझे।

Saturday 19 June 2010

तेरी ज़ुल्फ़ें

तेरी ज़ुल्फ़ों की फ़िज़ाओं से घिरा हूं ,बेअता बारिश को सजदे कर रहा हूं ।
ये मुहब्बत भी अंधेरी इक गली है ,ठोकरें खाने अकेले चल पड़ा हूं।
तेरी आंखों की नदी भी बेसुकूं है ,दर्द के दरिया में फ़िर भी डूबता हूं ।
सांसें ये कुरबान हैं तेरी हंसी पे ,मैं पतंगा, शमा के घर पे खड़ा हूं ।
फ़िर चरागों का हवाओं से मिलन है, क़ब्र अपना ,अपने हाथों खोदता हूं।
आंखों पे काजल लगाया ना करो , मैं उजालों की निज़ामत में फ़ंसा हूं ।
सरहदों की बंदगी से डरते हो क्यूं , दुश्मनों के कारवां से जा मिला हूं ।
वो दगाबाज़ों के मंदिर में फ़ंसी है , मैं वफ़ा की राह में तनहा हुआ हूं ।
सुर्ख़ तेरे व्होंठ माशा अल्ला दानी , मैं नदी के तट पे प्यासा मरा हूं ।

Friday 18 June 2010

कहानी

मुह्ब्बत की कहानी मैं सुनाता हूं, अदावत की गली में मैं न जाता हूं।
किताबे-दिल अटी तेरी लकीरों से , लकीरों की जबीं मैं ना सजाता हूं ।
सताया हूं हसीनों की नज़ाकत का, मज़ारे- इश्क़ से अब खौफ़ खाता हूं।
ग़रीबों के मुहल्ले का निवासी हूं , अमीरों का महल मैं ही सजाता हूं।
शराबी को दुआवों से नहीं मतलब,रहम की बातों से अब डर सा जाता हूं।
तुम्हें देखा हूं जब से बे-सुकूं हूं मैं , तड़फ़ को अपनी दुनिया से छिपाता हूं।
चराग़ो सा ये दिल मासूम है फ़िर भी, मैं पागल आंधियों को आज़माता हूं ।
किनारे खुदगरज़ हैं इसलिये दानी , वफ़ायें मैं समन्दर से निभाता हूं ।

Thursday 17 June 2010

रथ के पहिये

दिल रोया ना आंखें बरसीं ,तुम आये ना सांसें ठहरीं।
ख्वाबों पर भी तेरा बस है , तनहाई में तू ही दिखती।
मिल जाये जो दीद तुम्हारी ,कल ईद हमारी भी मनती।
मजबूत सफ़ीना है तेरा , जर्जर सी है मेरी कश्ती ।
मन्ज़ूर मुझे डूबना लेकिन , दिल की नदियां है कहां गहरी।
सब्र चराग़ों सा रखता मैं , ज़ुल्मी हवायें तुमसे डरतीं ।
अर्श सियासत की छोड़ न तू , मर जायेगी जनता प्यासी ।
वादा तूने तोडा है पर , तुहमत में है मेरी बस्ती ।
तेरा घर मेरा मंदिर है , मेरी जान वहीं है अटकी।
रथ के दो पहिये हम दोनों , तू ही हरदम आगे चलती।

Wednesday 16 June 2010

दिल की दास्तां

ये सुलगते हुवे दिल की दास्तां है, , मेरे रग रग में यारों धुआं धुआं है ।
दर्द ग़म तीरगी से सजी है महफ़िल , आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इंतज़ार तो है , पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मैं , शहर वालों के हाथों में गिट्टियां हैं।
ये मकाने-मुहब्बत है तिनकों का पर, अब ज़माने की नज़रों में आंधियां हैं।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती , मेरी ग़ज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है ।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां हैं ।
मुल्क खातिर जवानी में बेवफ़ा था, दौरे-पीरी ,शहादत में मेरी हां है ।
सजदे में बैठा हूं रिन्दगाह में मैं , दानी अब तो बताओ खुदा कहां है ।

तिरगी- अंधेरा। पासबां-रक्छख । तामीर- बना। दौरे-पीरी-बुढापे का दौर।
रिन्दगाह-शराबखाना

Tuesday 15 June 2010

सूर्ख गुलशन

तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे , ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को , तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब , मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो , शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को , यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।


अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी

Sunday 13 June 2010

दर्दे-दिल

दर्दे- दिल के अब नज़ारे नहीं होते , आजकल उनके इशारे नहीं होते ।
छोड़ कर जबसे गई तुम, कसम तेरी ,अब तसव्वुर भी तुमहारे नहीं होते ।
गर पतंगे बे-खुदी मे नहीं जीते , शमा मे इतने शरारे नहीं होते ।
जीत कर भी हारना है मुहब्बत में , जंग में इतने खसारे नहीं होते ।
है हिदायत उस खुदा की ,करो उनकी तुम मदद जिनके सहारे नहीं होते ।
ये दग़ाबाज़ी घरों से हुई अपनी , वरना हम भी जंग हारे नहीं होते ।
ज़ख्म भी गहरा दर्द भी तेज़ है वरना, दुश्मनों को हुम पुकारे नहीं होते ।
रो रही है धरती धूल धुआं कचरा से , आजकल मौसम इतने करारे नहीं होते।
ज़ीस्त की कश्ती चली जनिबे सागर , इस सफ़र में फ़िर किनारे नहीं होते ।
हुस्न से गर रब्त रखते नहीं दानी , तो जीवन भर हुम अभागे नहीं होते।

तसव्वुर- यादें शरारे=आग खसारे -नुकसान ज़ीस्त--जीवन जानिबे सागर-सागर की ओर।
रब्त =संबंध

Saturday 12 June 2010

तशनगी

रात भर बेबसी सी होती है , सुबह फ़िर तशनगी सी होती है।
फ़ूलों में खुशबू अब नहीं होते ,धूप मे भी नमी सी होती है।
अपनी खुशियां सुकूं नहीं देती , तेरे ग़म से खुशी सी होती है ।
मैं शराबी नहीं मगर तुझको , देखकर मयकशी सी होती है ।
मुल्क में बहरों की सियासत है ,हर सदा अनसुनी सी होती है।
पानियों का मुहाल है रुकना , ज़िन्दगी भी नदी सी होती है।
सामने हुस्न जब भी आती है , कल्ब में खलबली सी होती है।
गर जलावो मशाले ग़म त्तो ही, बा-अदब शाइरी सी होती है।
बंद इक राह तो खुलेगी नई , मौत भी ज़िन्दगी सी होती है।
सरहदों के सवाल पर दानी , क्यूं नसें बावरी सी होती हैं ।

Friday 11 June 2010

दुशमनी

आईनों से नहीं है दुशमनी मेरी , अक्श से अपनी डरती ज़िन्दगी मेरी।
हुस्न ही है मुसीबत का सबब मेरा , क्यूं इबादत करे फ़िर बे-खुदी मेरी ।
साहिलों की अदा मंझधार के दम से , लहरों को पेश हरदम बन्दगी मेरी ।
घर वतन छोड़ आया हुस्न के पीछे , आज खुद पे हंसे सरकशी मेरी ।
सूर्य से क्यूं नज़र लड़ाई थी ,है खफ़ा नज़रों से अब रौशनी मेरी ।
सब्ज गुलशन समझ बैठा मै सहरा को , अब कहां से बुझेगी तशनगी मेरी।
शमा के प्यार मे मै जल चुका इतना ,मर के अब रो रही है खुदकुशी मेरी ।
मै बड़ी से बड़ी खुशियों को पकड़ लाया , दूर जाती गई छोटी खुशी मेरी।
तू नहीं तो नशा कफ़ूर है दानी ,इक नज़र ही तुम्हरी मयकशी मेरी ।

6 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post

Wednesday 9 June 2010

मेरा सफ़र

रात उम्मीद से भारी है , सुबह होने नहीं वाली है।
मुश्किलों से भरा है सफ़र ,आज ज़ख्मों की दीवाली है।
मैं चरागों का दरबान हूं , वो हवाओं की घरवाली है।
क़ातिलों को ज़मानत मिली , न्याय मक़तूल ने पा ली है।
मै खुदा को कहां ढूढूं अब , मन्दिरों मे भी मक्कारी है।
सुख समन्दर मे पाता हूं मै , दिल किनारों का सरकारी है।
क्यूं रखूं चांदनी से वफ़ा , बे -वफ़ाई से वो हारी है।
लहरों का सर झुकाने चली , मेरी कश्ती खुरापाती है।
झोपड़ी रास आती मुझे , महलों का दिल अहंकारी है।
गो चढाई पहाड़ों सी है , पैरों की ज़ुल्फ़ें मतवाली हैं।
पड़ चुके पैरों मे छाले गो , फ़िर भी मेरा सफ़र ज़ारी है।

Tuesday 8 June 2010

तबस्सुम

तेरे व्होंठो पे जब भी तबस्सुम दिखे ,मेरे दिल मे ग़ुनाहों का मौसम बने।
गेसुयें तेरी लहराती है इस तरह , गोया बारिश के लश्कर का परचम तने।
तेरी तस्वीर को जब भी शैदा करूं , तो मेरी आंखों से सूर्ख शबनम बहे ।
दूर हूं तुझसे पर ख्वाहिशे दिल यही , दिल मे तू ही रहे या तेरा ग़म रहे ।
तेरे चश्मे समन्दर का है यूं नशा , इस शराबी के पतवारों मे दम दिखे ।
चांदनी बेवफ़ाई न कर और कुछ , चांद का कारवां फ़िर न गुमसुम चले।
ईद दीवाली दोनों मिल के मनाया करें, हश्र तक अपना मजबूत संगम रहे।
मैं चराग़ों की ज़मानत ले लूं सनम , गर हवायें तेरी सर पे हरदम बहे ।
मेरी दरवेशी पे कुछ तो तू खा रहम, खिड़कियों मे ही अब अक्शे-पूनम सजे।

2 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post

Monday 7 June 2010

मेरी दिशा

दिशाओं से मेरी दिशा पूछ लेना , सितारों से मेरा पता पूछ लेना ।
सफ़र मे अंधेरों का ही है सहारा , उजालों का सर क्यूं फ़िरा पूछ लेना ।
मैं तेरे लिये जान दे सकता भी हूं , मगर दिल में मेरी जगह पूछ लेना।
ज़मीं जाह ज़र की इनायत है लेकिन , सुकूं मुझसे क्यूं है खफ़ा पूछ लेना।
अदावत,बग़ावत, खयानत,सियासत , से इंसानों को क्या मिला पूछ लेना।
चराग़ों की तहज़ीब भाती है मुझको , हवाओं का तुम फ़ैसला पूछ लेना।
अभी न्याय की बस्ती मे मेरा घर है , ग़ुनाहों का दिल क्यूं दुखा पूछ लेना।
फ़लक को झुकाने की कोशिश थी मेरी , फ़लक खुद ही क्यूं झुक गया पूछ लेना ।
समन्दर से मुझको मुहब्बत है दानी, किनारों का तुम फ़लसफ़ा पूछ लेना।

फ़लक=गगन, जाह=सम्मान, ज़र=धन,अदावत=दुशमनी,।

मेरी दिशा

दिशाओं से मेरी दिशा पूछ लेना , सितारों से मेरा पता पूछ लेना ।
सफ़र मे अंधेरों का ही है सहारा , उजालों का सर क्यूं फ़िरा पूछ लेना ।
मैं तेरे लिये जान दे सकता भी हूं , मगर दिल में मेरी जगह पूछ लेना।
ज़मीं जाह ज़र की इनायत है लेकिन , सुकूं मुझसे क्यूं है खफ़ा पूछ लेना।
अदावत,बग़ावत, खयानत,सियासत , से इंसानों को क्या मिला पूछ लेना।
चराओं की तहज़ीब भाती है मुझको , हवाओं का तुम फ़ैसला पूछ लेना।
अभी न्याय की बस्ती मे मेरा घर है , ग़ुनाहों का दिल क्यूं दुखा पूछ लेना।
फ़लक को झुकाने की कोशिश थी मेरी , फ़लक खुद ही क्यूं झुक गया पूछ लेना ।
समन्दर से मुझको मुहब्बत है दानी, किनारों का तुम फ़लसफ़ा पूछ लेना।

फ़लक=गगन, जाह=सम्मान, ज़र=धन,अदावत=दुशमनी,।

Sunday 6 June 2010

बेबसी

दिल तेरे ही ग़मों का तलबगार है अब , दर्द गम बे-बसी से मुझे प्यार है अब।
कश्ती-ए-दिल समन्दर मे महफ़ूज़ रहती, खुदगरज़ साहिलों को नमस्कार है अब।
क़ातिलों का अदालत से टांका यूं , गोया मक़्तूल खुद ही ग़ुनहगार है अब।
मैं चरागों को जला कर सर पे रखा हूं , दिल हवाओं से लड़ने तैयार है अब।
क्यूं कयामत अदाओं से ढाती हो हमदम, पास तेरे निगाहों का हथियार है अब।
मेरी कुर्बानी मजनूं से बढ के रहेगी, मेरी लैला हवस मे गिरिफ़्तार है अब।
इश्क़ अब ज़िन्दगी का किनारा नहीं है, बे-वफ़ाई का दरिया है,मंझधार है अब।
उम्र भर रावणी क्रित्य करता रहा मैं, राम का नाम ही पीरी में सार है अब।
दीन की बातें बे-मानी दुनिया में अब, पैसों से दानी सबको सरोकार है अब।

Saturday 5 June 2010

मेरी खुशी तेरी खुशी

मेरी खुशी में तेरी खुशी हो ज़रूरी तो नहीं, तस्वीर दोनों की एक सी हो ज़रूरी तो नहीं।
हर आदमी के दिल में भलाई बुराई साथ है, हर वक़्त ये इन्सां आदमी हो ज़रूरी तो नहीं
कुछ लोग जीते जी मौत की भीख भी मांगते ,अहले-नफ़स में भी ज़िन्दगी हो ज़रूरी तो नहीं।
हम इश्क़ के सागर में सफ़ीना चलाते ही चले, हर शाम साहिल की बन्दगी हो ज़रूरी तो नहीं।
इस बज़्म में आकर वो चली क्यूं गई बेलौस ही, मेरे खुदा की नाराज़गी हो ज़रूरी तो नहीं।
गाहे-ब-गाहे दिल दर्द का स्वाद चखता है मगर , रोते समय आंखों में नमी हो ज़रूरी तो नहीं।
मखमूर बे-गाने शहर को छोड़ हम सहरा चले , जंगे सचाई मे मौत ही हो ज़रूरी तो नहीं।
रिश्ते बनाओ गर तो निभाना ज़रूरी है दानी , वरना पड़ोसी से दोस्ती हो ज़रूरी तो नहीं।

अहले -नफ़स- सांस वाले( जो जी रहें हैं), सफ़ीना-बड़ी नाव।बज़्म-महफ़िल। बेलौस-बिना करण।
मखमूर-खुमार से भरा(नशे मे मस्त)। सहरा- जंगल या रेगिस्तान।

Friday 4 June 2010

तमन्नाओं के बादल

तमन्नाओं के बादल में फ़ंसे हैं हम , हवस में मूंद कर आंखें पड़े हैं हम।
ठ्हरता ही नहीं दिल में वफ़ा का जल,दग़ाबाज़ी के चिकने हां घड़े हैं हम।
नहीं हसिल है मेहनत की दुवा हमको ,बिना पुख्ता इरादों के चले हैं हम।
बिना पतवार कश्ती है समन्दर में , मुकद्दर पे भरोसा कर रहे हैं हम ।
न जाने मात्र-भाषा के अदब को हम,विदेशी स्कूलों में मानों पढे हैं हम।
गो रावण की गली मे हम नहीं रहते,मगर कब राम के रस्ते चले हैं हम ।
उजालों का सफ़र तुमको मुबारक़ हो ,अंधेरों के मुसाफ़िर बन चुके हैं हम।
हवाओं से लड़ाई है चरागों की ,हसीनों की ज़मानत ले रहे हैं हम ।
शराबी दिल हमेशा क्यूं बहकता है,कि मौका-ए-विजय को चूकते हैं हम।
2 सेकंड पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post

Thursday 3 June 2010

राहे मुहब्बत

राहे मुहब्बत दर्द से भरर्पूर है, अब बे-वफ़ाई इश्क़ का दस्तूर है।
दिल के समन्दर मे वफ़ा की कश्ती है, आंखों के साग़र को हवस मन्ज़ूर है।
ग़म के चमन की रोज़ सजदे करता हूं, पतझ्ड़ के व्होठों मे मेरा ही नूर है।
बारिश का मौसम रुख पे आया इस तरह, ज़ुल्फ़ों का तेरा साया भी मग़रूर है।
दिल के चरागों को जला कर बैठा हूं , अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है।
जब से नदी के पास ये दिल बैठा है , मेरे सफ़र की प्यास मुझसे दूर है।
दिल राम को तरज़ीह देता है मगर ,मन रावणी क्र्त्यों मे मग़रूर है।
चाले सियासत की तेरी ज़ुल्फ़ों सी है , जनता उलझने को सदा मजबूर है।

Wednesday 2 June 2010

मजबूरी

मजबूरी कुछ तो होगी जो हमसे जुदा हुवे,तुम इश्क़ की ग़ुनाहों से फ़िर क्यूं खफ़ा हुवे।
तुम ज़िन्दगी निभाती हो जीती कहां हो यार, कर प्यार हमसे ग़ैर के दिल की दुआ हुवे।
मन्ज़ूर है लबों पे समन्दर की आग तुम , तो सर्द साहिलों की हंसी से रज़ा हुवे।
जुर्मे- हवस मे डूबी रही सर से पैर तक।, हम सब्र की अदालतों का फ़ैसला हुवे ।
ता-उम्र तुमने सिर्फ़ अंधेरा दिया मुझे , हम भी उजालों के लिये कब बावरा हुवे।
तक़दीर मे सिपाही बनना था बन गये , पर रंगे-खून पे कभी ना हम फ़िदा हुवे।
जर्जर है इस ग़रीब के छत की कमानियां , बारिश मे राजनीति का हम मुद्दआ हुवे।
महफ़ूज़ है चरागों का दरबार दिल मे इस हम आंधियों के दर्द का भी रास्ता हुवे

a few seconds ago · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post

Tuesday 1 June 2010

मौत की परवाज़

तन्हाई भरी रात मे इक चिड़िये की आवाज़, गो ज़िन्दगी के बादलों में मौत की परवाज़ ।
इस दिल के मुकद्दर मे चरागों का मकां जब, क्यूं फ़िक्र करूं आंधियों की,वो रहें नाराज़।
मै सरहदों पे दोस्ती की करता हूं बातें , अपनों से लड़ाई का यही है मेरा अन्दाज़ ।
तुम जब से अमीरों की ज़मानत मे हो हमदम, ग़ुरबत की अदालत के कलम तबसे हैं नसाज़।
रावण की कहानी का मै ही लिख्ता हूं हर स्क्रिपट,मेरी ही लिखावट से मिले राम को सरताज़।
अभिमान, तुम्हे अपने महल पे है बहुत,तो मुझको भी है अपनी मता-ए-झोपड़ी पर नाज़।
तेरे लिये मैं दुनिया से लड़ सकता हूं दानी, दिल जंगे मुहब्बत मे ज़माने से है ज़ांबाज़।