झुलस चुका है तेरे वादों का चमन हमदम,भरम के पानी से कब तक करूं जतन हमदम।
समन्दरे-वफ़ा ही मेरे इश्क़ की महफ़िल , तेरा दग़ा के किनारों सा अन्जुमन हमदम।
कुम्हारों की दुआ है मेरे प्यार की धरा को,अजीज़ है तुझे क्यूं ग़ैर का वतन हमदम।
शराबे-चश्म पिलाती हो इतनी तुम अदा से,लरजता फिर रहा है मेरा बांकपन हमदम।
ग़मे-चराग़ां से रौशन है मेरी ग़ुरबत ,ख़ुशी-ए-आंधियों कर ले तू गबन हमदम।
सज़ा झुके हुवे पौरष को ना दे वरना लोग,कहेंगे टूटा सिकन्दर का क्यूं वचन हमदम।
क़मर ने चांदनी को नाज़ से रखा पर वो,पहन ली बादलों के इश्क़ का कफ़न हमदम।
ग़रीबों से ख़फ़ा है वो अमीरों पर कुरबान,ज़माने से है ज़माने का ये चलन हमदम ।
बचाना है मुझे अपने अहम को भी दानी,वफ़ा के बदले दग़ा क्यूं करूं सहन हमदम।
अंजुमन- महफ़िल,ग़मे-चराग़ां- चराग़ो के ग़म से। ग़ुर्बत-ग़रीबी।क़मर-चांद।
Thursday, 15 July 2010
Monday, 12 July 2010
उलझन
उलझनों में मुब्तिला है ज़िन्दगी ,मुश्किलों का सिलसिला है ज़िन्दगी।
बीच सागर में ख़ुशी पाता हूं मैं , साहिले ग़म से जुदा है ज़िन्दगी ।
फ़ांसी फिर मक़्तूल को दे दी गई ,क़ातिलों का फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी।
किसी को तरसाती है ता-ज़िन्दगी,किसी के खातिर ख़ुदा है ज़िन्दगी।
मैं ग़ुलामी हुस्न की क्यूं ना करूं, चाकरी की इक अदा है ज़िन्दगी ।
इक किनारे पे ख़ुशी दूजे पे ग़म ,दो क़दम का फ़ासला है ज़िन्दगी।
मैं हताशा के भंवर में फंस चुका, मेरी सांसों से ख़फ़ा है ज़िन्दगी।
बे-समय भी फ़ूट जाती है कभी ,पानी का इक बुलबुला है ज़िन्दगी।
वादा करके तुम गई हो जब से दूर, तेरी यादों की क़बा है ज़िन्दगी ।
मैं चराग़ो के सफ़र के साथ हूं , बे-रहम दानी हवा है ज़िन्दगी।
बीच सागर में ख़ुशी पाता हूं मैं , साहिले ग़म से जुदा है ज़िन्दगी ।
फ़ांसी फिर मक़्तूल को दे दी गई ,क़ातिलों का फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी।
किसी को तरसाती है ता-ज़िन्दगी,किसी के खातिर ख़ुदा है ज़िन्दगी।
मैं ग़ुलामी हुस्न की क्यूं ना करूं, चाकरी की इक अदा है ज़िन्दगी ।
इक किनारे पे ख़ुशी दूजे पे ग़म ,दो क़दम का फ़ासला है ज़िन्दगी।
मैं हताशा के भंवर में फंस चुका, मेरी सांसों से ख़फ़ा है ज़िन्दगी।
बे-समय भी फ़ूट जाती है कभी ,पानी का इक बुलबुला है ज़िन्दगी।
वादा करके तुम गई हो जब से दूर, तेरी यादों की क़बा है ज़िन्दगी ।
मैं चराग़ो के सफ़र के साथ हूं , बे-रहम दानी हवा है ज़िन्दगी।
Saturday, 10 July 2010
Friday, 9 July 2010
ईमान
जब से दिलों की गलियों में ईमान बिकते हैं,हां तब से राहे-इश्क़ बियाबान लगते हैं।
ग़म से भरी है दास्तां मेरी जवानी की ,बज़ारे-इश्क़ मे सदा अरमान सड़ते हैं।
साहिल के घर का ज़ुल्म बहुत झेला है मैंने,मंझधार में ही सब्र को परवान चढते हैं।
दिल में नशा शराब का चढता नहीं कभी ,बस साक़ी के लिये ही गिरेबान फटते हैं।
हर काम पहले थोड़ा कठिन लगता है मगर,कोशिश करोगे दिल से तो आसान होते हैं।
ग़म के चराग़ों से मेरा रिश्ता पुराना है ,सुख के हवाओं में कहां इंसान बनते हैं ।
लबरेज़ है हवस से ,मुहब्बत का दरिया अब,बस चद वक़्त के लिये तूफ़ान उठते हैं।
सैयाद जब से बुलबुलों को बेच आया शहर ,तब से दरख़्ते-शहर परेशान दिखते हैं।
इस मुल्क की विशेष पहचान है दुनिया में,हिन्दू के मंदिरों मे मुसलमान झुकते हैं।
ग़म से भरी है दास्तां मेरी जवानी की ,बज़ारे-इश्क़ मे सदा अरमान सड़ते हैं।
साहिल के घर का ज़ुल्म बहुत झेला है मैंने,मंझधार में ही सब्र को परवान चढते हैं।
दिल में नशा शराब का चढता नहीं कभी ,बस साक़ी के लिये ही गिरेबान फटते हैं।
हर काम पहले थोड़ा कठिन लगता है मगर,कोशिश करोगे दिल से तो आसान होते हैं।
ग़म के चराग़ों से मेरा रिश्ता पुराना है ,सुख के हवाओं में कहां इंसान बनते हैं ।
लबरेज़ है हवस से ,मुहब्बत का दरिया अब,बस चद वक़्त के लिये तूफ़ान उठते हैं।
सैयाद जब से बुलबुलों को बेच आया शहर ,तब से दरख़्ते-शहर परेशान दिखते हैं।
इस मुल्क की विशेष पहचान है दुनिया में,हिन्दू के मंदिरों मे मुसलमान झुकते हैं।
Thursday, 8 July 2010
सरहदें
क़ाग़ज पे मेरा नाम लिख मिटाते क्यूं हो ,है गर मुहब्बत मुझसे तो छिपाते क्यूं हो।
घर के दहाने इन तवील रातों मे तुम , इक रौश्नी मुझको दिखा बुझाते क्यूं हो।
जब ज़ख़्मों की तसवीर है नदारद दिल में , तो दर्द की महफ़िल अबस सजाते क्यूं हो।
आवारगी तेरा पयाम है दुनिया को , तो दिल ज़माने से कभी लगाते क्यूं हो।
जब ज़िन्दगी क़ुरबान है किसी के खातिर , तो नाम उसका दुनिया को बताते क्यूं हो।
तेरे ग़मों का हिसाब तू ही जाने , लेकर ग़मों का बोझ मुस्कुराते क्यूं हो।
तुम आंसुओं का मोल जानते हो हमदम , तो आंसुओं को बेवजह गिराते क्यूं हो।
ये सरहदें बेबात बांट ली हमने जब ,तुम सरहदों में बार बार आते क्यूं हो।
ख़ुद हौसलों से दूर हो जीवन भर दानी ,तो हौसला मेरा सदा बढाते क्यूं हो।
घर के दहाने इन तवील रातों मे तुम , इक रौश्नी मुझको दिखा बुझाते क्यूं हो।
जब ज़ख़्मों की तसवीर है नदारद दिल में , तो दर्द की महफ़िल अबस सजाते क्यूं हो।
आवारगी तेरा पयाम है दुनिया को , तो दिल ज़माने से कभी लगाते क्यूं हो।
जब ज़िन्दगी क़ुरबान है किसी के खातिर , तो नाम उसका दुनिया को बताते क्यूं हो।
तेरे ग़मों का हिसाब तू ही जाने , लेकर ग़मों का बोझ मुस्कुराते क्यूं हो।
तुम आंसुओं का मोल जानते हो हमदम , तो आंसुओं को बेवजह गिराते क्यूं हो।
ये सरहदें बेबात बांट ली हमने जब ,तुम सरहदों में बार बार आते क्यूं हो।
ख़ुद हौसलों से दूर हो जीवन भर दानी ,तो हौसला मेरा सदा बढाते क्यूं हो।
Wednesday, 7 July 2010
तेरा मेरा रिश्ता
तेरा मेरा ये जो रिश्ता है सनम , बस इसी का नाम दुनिया है सनम।
हमको जब तुमने ख़ुदा माना है तो,क्यूं ख़ुदा से अपने पर्दा है सनम।
इश्क़ की अपनी रिवायत होती है ,लैला मजनूं का ये तुहफ़ा है सनम।
ना करूंगा जग में ज़ाहिर तेरा नाम,सच्चे आशिक़ का ये वादा है सनम।
हम हिफ़ाज़त ग़ैरों से कर लेंगे पर,मुल्क को अपनों से ख़तरा है सनम।
बिकने को तैयार है हर इंसां आज,कोई सस्ता कोई महंगा है सनम।
चांदनी फिर बादलों के साथ है ,चांद का दुख किसने समझा है सनम।
है चराग़ो के लिये मेरी दुआ , आंधियों से कौन डरता है सनम।
दिल समन्दर की अदाओं का मुरीद,बेरहम, साहिल का चेहरा है सनम।
इस जगह चोरी न करना इस जगह,कोई अफ़सर कोई नेता है सनम।
मेरा पुस्तैनी मकां है उस तरफ़ , दिल लकीरों से न डरता है सनम।
हमको जब तुमने ख़ुदा माना है तो,क्यूं ख़ुदा से अपने पर्दा है सनम।
इश्क़ की अपनी रिवायत होती है ,लैला मजनूं का ये तुहफ़ा है सनम।
ना करूंगा जग में ज़ाहिर तेरा नाम,सच्चे आशिक़ का ये वादा है सनम।
हम हिफ़ाज़त ग़ैरों से कर लेंगे पर,मुल्क को अपनों से ख़तरा है सनम।
बिकने को तैयार है हर इंसां आज,कोई सस्ता कोई महंगा है सनम।
चांदनी फिर बादलों के साथ है ,चांद का दुख किसने समझा है सनम।
है चराग़ो के लिये मेरी दुआ , आंधियों से कौन डरता है सनम।
दिल समन्दर की अदाओं का मुरीद,बेरहम, साहिल का चेहरा है सनम।
इस जगह चोरी न करना इस जगह,कोई अफ़सर कोई नेता है सनम।
मेरा पुस्तैनी मकां है उस तरफ़ , दिल लकीरों से न डरता है सनम।
Monday, 5 July 2010
ज़िन्दगी
इक मुख़्तसर कहानी है अपनी ये ज़िन्दगी , कुछ पन्नों में ग़मों की हवा कुछ में है ख़ुशी।
मेरे दरख़्तों सी वफ़ा पे दुनिया नाज़ करती , किरदार तेरे इश्क़ का बहती हुई नदी।
सबको यहां से जाना है इक शब गुज़ार पर , इक रात भी कभी लगे लाचार इक सदी।
दीवार ख़ोख़ला है तेरे महले-शौक का , मजबूत बेश, सब्र की मेरी ये झोपड़ी।
जीते जी माना तुमने तग़ाफ़ुल नवाज़ा पर , क्यूं रखती है लहद के लिये दिल में बेरुख़ी।
जुर्मों की भीड़ क्यूं है तेरे शहरे-इश्क़ में , लबरेज़ है सुकूं से, दिले-गांव की गली।
मैं रात दिन जलाता हूं दिल के चराग़ों को , पर तूने की हवाओं के ईश्वर से दोस्ती।
मजबूरी तुमने देखी न दरवेशे-इश्क़ की , ख़ुद्दार राही के लिये हर गाम दलदली।
पतवार तेरा,साहिलों के ज़ुल्मों का हबीब , जर्जर मेरी ये कश्ती समन्दर से भिड़ चुकी।
मेरे दरख़्तों सी वफ़ा पे दुनिया नाज़ करती , किरदार तेरे इश्क़ का बहती हुई नदी।
सबको यहां से जाना है इक शब गुज़ार पर , इक रात भी कभी लगे लाचार इक सदी।
दीवार ख़ोख़ला है तेरे महले-शौक का , मजबूत बेश, सब्र की मेरी ये झोपड़ी।
जीते जी माना तुमने तग़ाफ़ुल नवाज़ा पर , क्यूं रखती है लहद के लिये दिल में बेरुख़ी।
जुर्मों की भीड़ क्यूं है तेरे शहरे-इश्क़ में , लबरेज़ है सुकूं से, दिले-गांव की गली।
मैं रात दिन जलाता हूं दिल के चराग़ों को , पर तूने की हवाओं के ईश्वर से दोस्ती।
मजबूरी तुमने देखी न दरवेशे-इश्क़ की , ख़ुद्दार राही के लिये हर गाम दलदली।
पतवार तेरा,साहिलों के ज़ुल्मों का हबीब , जर्जर मेरी ये कश्ती समन्दर से भिड़ चुकी।
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