मेरी खुशी में तेरी खुशी हो ज़रूरी तो नहीं, तस्वीर दोनों की एक सी हो ज़रूरी तो नहीं।
हर आदमी के दिल में भलाई बुराई साथ है, हर वक़्त ये इन्सां आदमी हो ज़रूरी तो नहीं
कुछ लोग जीते जी मौत की भीख भी मांगते ,अहले-नफ़स में भी ज़िन्दगी हो ज़रूरी तो नहीं।
हम इश्क़ के सागर में सफ़ीना चलाते ही चले, हर शाम साहिल की बन्दगी हो ज़रूरी तो नहीं।
इस बज़्म में आकर वो चली क्यूं गई बेलौस ही, मेरे खुदा की नाराज़गी हो ज़रूरी तो नहीं।
गाहे-ब-गाहे दिल दर्द का स्वाद चखता है मगर , रोते समय आंखों में नमी हो ज़रूरी तो नहीं।
मखमूर बे-गाने शहर को छोड़ हम सहरा चले , जंगे सचाई मे मौत ही हो ज़रूरी तो नहीं।
रिश्ते बनाओ गर तो निभाना ज़रूरी है दानी , वरना पड़ोसी से दोस्ती हो ज़रूरी तो नहीं।
अहले -नफ़स- सांस वाले( जो जी रहें हैं), सफ़ीना-बड़ी नाव।बज़्म-महफ़िल। बेलौस-बिना करण।
मखमूर-खुमार से भरा(नशे मे मस्त)। सहरा- जंगल या रेगिस्तान।
Saturday, 5 June 2010
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