Thursday 15 July 2010

वादों का चमन

झुलस चुका है तेरे वादों का चमन हमदम,भरम के पानी से कब तक करूं जतन हमदम।
समन्दरे-वफ़ा ही मेरे इश्क़ की महफ़िल , तेरा दग़ा के किनारों सा अन्जुमन हमदम।
कुम्हारों की दुआ है मेरे प्यार की धरा को,अजीज़ है तुझे क्यूं ग़ैर का वतन हमदम।
शराबे-चश्म पिलाती हो इतनी तुम अदा से,लरजता फिर रहा है मेरा बांकपन हमदम।
ग़मे-चराग़ां से रौशन है मेरी ग़ुरबत ,ख़ुशी-ए-आंधियों कर ले तू गबन हमदम।
सज़ा झुके हुवे पौरष को ना दे वरना लोग,कहेंगे टूटा सिकन्दर का क्यूं वचन हमदम।
क़मर ने चांदनी को नाज़ से रखा पर वो,पहन ली बादलों के इश्क़ का कफ़न हमदम।
ग़रीबों से ख़फ़ा है वो अमीरों पर कुरबान,ज़माने से है ज़माने का ये चलन हमदम ।
बचाना है मुझे अपने अहम को भी दानी,वफ़ा के बदले दग़ा क्यूं करूं सहन हमदम।

अंजुमन- महफ़िल,ग़मे-चराग़ां- चराग़ो के ग़म से। ग़ुर्बत-ग़रीबी।क़मर-चांद।

11 comments:

  1. इस बहर में लिखना वाकई मुश्किल है ..लेकिन आपने कर दिखाया ।

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  2. टिप्पणि के लिये बहुत बहुत धन्यवाद शरद भाई।

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  3. दानी जी ,

    आप ने बहुत अच्छी ग़ज़लें लिखी हैं , शायद चिट्ठा जगत से नहीं जुड़े हैं आप , इसी लिये ज्यादा पाठक गण आप तक नहीं पहुँचे .

    मौके से चूक गए यानि मौका हाथ से छूट गया , चूक हो गयी यानि गलती हो गई , दिए में तेल चुक गया यानि तेल समाप्त हो गया , इसे जिन्दगी से भी जोड़ लिया जाता है , प्राण शक्ति ख़त्म तो जिन्दगी चुक गई ; इसी तरह मैंने इसे सब्र ..सहन शक्ति ख़त्म होजाने पर सब्र का प्याला चुक गया हो जैसे की तरह प्रयोग किया है ...अब बताइए कि क्या ये ठीक है या नहीं ? हिंदी जगत में लोग इस शब्द से परिचित हैं ।

    मैं इसे अन्यथा नहीं ले रही , क्योंकि टिप्पणी कॉलम है ही इसीलिये , ताकि हमें हमारी कमियों का भी पता लग सके ,सुधार की गुंजाईश हो , एक प्रश्न बहुत सारे समाधान भी खोजता है और बहुत सारी जिज्ञासाओं को भी शांत करता है । क्योंकि ये प्रश्न कई लोगों का हो सकता है । ।

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  4. छत्‍तीसगढ़ ब्‍लॉगर्स चौपाल में आपका स्‍वागत है.
    ईद व गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनांए.
    आरंभ
    गुरतुर गोठ

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  5. बहुत ही सुंदर और सशक्त रचना //...
    kabhi mere blog par bhi padharee //

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  6. कुम्हारों की दुआ है मेरे प्यार की धरा को,अजीज़ है तुझे क्यूं ग़ैर का वतन हमदम।
    शराबे-चश्म पिलाती हो इतनी तुम अदा से,लरजता फिर रहा है मेरा बांकपन हमदम।//
    docter sahab / lazawaw /
    meri urdu kamjor hai /
    font ko bada kare //

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  7. उमदा प्रस्तुति। बधाई।

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  8. .सज़ा झुके हुवे पौरष को ना दे वरना लोग,कहेंगे टूटा सिकन्दर का क्यूं वचन हमदम।
    क़मर ने चांदनी को नाज़ से रखा पर वो,पहन ली बादलों के इश्क़ का कफ़न हमदम।
    ग़रीबों से ख़फ़ा है वो अमीरों पर कुरबान,ज़माने से है ज़माने का ये चलन हमदम ।
    बचाना है मुझे अपने अहम को भी दानी,वफ़ा के बदले दग़ा क्यूं करूं सहन हमदम।बेहतरीन प्रस्तुति और बिम्ब एक दम से नए रूप और अंदाज़ ,शैली के बोल .आभार .
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    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    रजोनिवृत्ती में बे -असर सिद्ध हुई है सोया प्रोटीन .
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