Monday 31 May 2010

दुश्मने-mulk

कोई रस्ता बचा नहीं है आज, और कुछ सोचना नहीं है आज।
क़त्ल मासूमों का बहुत हो चुका, न्याय का पट खुला नहीं है आज।
पानी सर से उपर पहुंच चुका है, तिनकों का भी पता नहीं है आज्।
उनका ऐलाने-जंग हो चुका पर , अपना जज़्बा दिखा नहीं है आज्।
क्यूं सियासत नसमझे मौत का दर्द, उनका अपना मरा नहीं है आज।
न्याय, अन्याय करके मांग रहे , उनका कोई खुदा नहीं है आज्।
रावणो को न मारा जाये कभी , राम ने ये कहा नही है आज।
सांपों को पालना उचित नहीं है, ज़हर की इन्तहा नही है आज।
पकड़ो या मारो गीदड़ों को,और ,उनकी कोई सज़ा नही है आज्।
देर आये दुरुस्त आये ये , जुमला किसने सुना नही है आज।
गो अंधेरा ज़रा बढा है पर , सूर्य दानी छिपा नहीं है आज।

Sunday 30 May 2010

सबबे-वफ़ा

दिलों के धड़कने का कुछ तो सबब होगा , गुलों के चटकने क कुछ तो सबब होगा।
वफ़ा और तारीख मे है न रिश्ता पर , वफ़ा के बदलने का कुछ तो सबब होगा ।
सितम ज़ुल्म बेदार रखती है बग़ावत को , रगों के सुलगने का कुछ तो सबब होगा।
शहादत किसे रास आती जवानी में , कि सरहद में मरने का कुछ तो सबब होगा।
कहां खो गया चांद जब बज़्म मे तू आई , क़मर के यूं छिपने क कुछ तो सबब होगा।
खयानत का इल्ज़ाम यूं सहना मुश्किल पर, तुम्हे माफ़ करने का कुछ तो सबब होगा ।
सफ़ीना-समन्दर मे कैसी दोस्ती दानी ,किनारों से बचने का कुछ तो सबब होगा ।


बेदार--jagrit॥ बज़्म-- महफ़िल। क़मर- चांद । सफ़ीना- बड़ी नाव । सबब- वजह -कारण।



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Saturday 29 May 2010

इन्सानियत

इन्सानियत इंसान की पहचान है , रावण सा रहना तो आसान है।
सारे किनारे खुदगरज़ हैं इसलिये , दिल मे समन्दर के लिये सम्मान है।
दिल से चरागों की इबादत करता हूं , अब आंधियों से जंग का ऐलान है।
गाने अदावत के नहीं गाता मैं , मुझको मिलन के गीतो का वरदान है।
मैं बन गया दरवेश तेरे प्यार मे , पर तू हवस के बाडों की ज़िन्दान है ।
तेरा भी परचम फ़हरेगा कल , हिम्मत के आगे क्या दमे-तूफ़ान है।
सारी सियासत सरहदों के खेल में , लाशे सिपाही खेल का सामान है।
सजदे खुदा को करना अच्छी बात है , लेकिन खुदा का अक्स ही इंसान है।
हर आदमी दानी बिकाऊ है यहां , ये सबसे सस्ता देश हिन्दुस्तान है।

Friday 28 May 2010

मेरी दुनिया

जब से तुमको देखा है , मरने की क्यूं इछ्छा है ।
इक नदी बौराई तू , शांत मेरा दरिया है ।
मैं पतन्गा तो नहीं , फ़िर भी मुझको जलना है।
तेरी यादें ही सनम , अब तो मेरी दुनिया है।
हमको जब माना खुदा ,हमसे फ़िर क्यूं परदा है।
दूर जब से तू गई , बज़्म मेरा तन्हा है ।
चोरी मेरी भी अदा , बस तलाशे मौक़ा है ।
धक्का देकर अपनों को,हमको आगे बढना है।
दोनों की ख्वाहिश यही , दानी से बस मिलना है।

Thursday 27 May 2010

तसव्वुर

तसव्वुर मे जीना ही ज़िन्दगानी है , तमन्नाओं के सहारे रवानी है।
मुक़द्दर मे क्या लिखा कैसे जाने हम, मुसलसल कोशिश सफ़लता की बानी है।
पहाडों सी, खुशियां हासिल हुई है पर , ग़मों की तक़दीर भी आसमानी है ।
समन्दर स्र मेरा मजबूत है रिश्ता , किनारों पर बेबसी की कहानी है ।
चरागों को सर पे रख के मैं चलता हूं, हवाओं को अपनी ताक़त दिखानी है।
हसीनों का साथ पाना है मुझको तो, ग़ुलामों सी अपनी सीरत बनानी है।
मुहब्बत की मुश्किलें जानता हूं मैं , वफ़ायें ता-उम्र दानी निभानी है ।

हवस के बादल

तू हवस के बादलों से घिरी है , इश्क़ वालों की नदी सूखी पडी है।
गोया रावण राम से डरता है लेकिन ,आज लक्ष्मण के हवाले झोपडी है।
शहर को अपने अमीरों की दुआ है , गाडियों मे लोन की तख्ती लगी है।
बच्चे पागल कह के मेरा पीछा करते,ये फ़कीरी मुझको तुमसे ही मिली है।
मैं सिकन्दर का पुराना साथी हूं पर, आज पोरष के लिये दीवानगी है।
मेरे दिल का ताला लगता भी नहीं , तेरी आंखें साजिशों से भरी है।
दिल का परवाना शहादत दे चुका है , शमा जाने क्यूं अकेले जल रही है ।
चांद पानी मांगने मजबूर है फ़िर , चांदनी की अब्र से जब दोस्ती है ।
शहर मे तेरे अदावत की सडक है ,गांव मे मेरे मुहब्बत की गली है ।
प्रस्तुतकर्ता ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι पर ५:३२ AM

Tuesday 25 May 2010

JawanI

जवानी जब भी चढती है ,बग़ावत खूब करती है।
मुहब्बत की शिलाओं पर ,वफ़ा की परतें जमती हैं।
रगों मे दर्द बढ्ता है , निगाहें पानी भरती हैं ।
झुलायें, नेकी को कब तक,बदी भी तो मचलती है।
समंदर की शराफ़त बस, किनारों तक उमडती है।
हसीनों की ज़मानत मे,हवस की लौ भडकती है।
परीन्दे को भगाओ मत,वो अपनी बेटी जैसी है।
शराबी के बहकने मे ,कहां साकी की मर्जी है।
चरागों के मकां मे क्यूं,हवायें मस्त रहती हैं।

Saturday 22 May 2010

नमाज़

तेरे लबों की जुम्बिशों का शिकार हूं ,तेरी ज़ुबां की साजिशों से तार तार हूं।
कश्ती तेरी जवानी की फ़िर डगमगा रही,जर्जर बुढापे मे भी मैं तेरा किनार हूं
तेरा हवाओं का मकां,मेरी चराग़ों सी तहज़ीब फ़िर भी मिलने को बेकरार हूं।
इज़्ज़त तुमहारे कारवां की सब ही करते हैं,लशकर को सजदा करता ज़मीने ग़ुबार हूं।
अहले ज़माना जादुई शय मानता तुम्हें,मैं तेरे हक़ में उनके लिये ऐतबार हूं।
तेरे चमन की आन को हरदम बचाता हूं, तेरे गुलों से लिपटा दर्दे खार हूं ।
तू मूल संग सूद भी मुझसे वसूल कर, तेरे दुकाने-हुस्न का बेज़ा उधार हूं ।
मेरी नमाज़, मेरे खुदा अब तो कर क़बूल,सदियों से झुकता बंदगी मे बार बार हूं।
जब से तुम्हारी दीद मिली है मुझे सनम,मै अपने ही वजूद से दानी फ़रार हूं।

Thursday 20 May 2010

मौत के नाम खत

लिख मौत के नाम का नामा तेरे घर को ढूंढता हूँ
गम से भरा क़तरा हूँ अपने समंदर को ढूंढता हूँ।
इक जीत कर जंग क्यूँ दिल अभिमान से लबरेज़ तेरा ,
मै भी शंशाह पोरुस हूँ सिकंदर को ढूंढता हूँ।
मेरे अपनों की बुलंदी मेरे ही दम से आसमान पे,
सब का मुकद्दर सजा अपने मुकद्दर को ढूंढता हूँ।
हमने जिन्हें बनाया जिनके कारन हमने की लड़ाई
यारों उसी बेजुबान मजबूर ईश्वर को ढूंढता हूँ।
जब साथ थी तवज्जो न दे सका हमसफ़र को
जब जा चुकी दूर तो उसके तसव्वुर को ढूंढता हूँ।
हर रत मैंने अंधेरों के दम से डकैती की दानी ,
घर में डकैती पड़ी तो मुनव्वर को ढूंढता हूँ।

मेरी दास्तां

ये सुलगते हुवे दिल की दास्तां है , मेरे रग रग मे यारो धुआं धुआं है।
दर्द गम तीरगी से सजी है महफ़िल, आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इन्तज़ार तो है ,पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मै, शह्र वालों के हाथों मे गिट्टियां है।
ये मकाने मुहब्बत है तिनकों का ,पर ज़माने की नज़रों मे आंधियां है ।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती,मेरी गज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां है।
मुल्क खातिर जवानी मे बे-वफ़ा था,दौरे-पीरी ,शहादत मे मेरी हां है।
कब से बैठा हूं रिन्दगाह मे,दानी अब तो बताओ खुदा कहां है।

मेरी दास्तां

ये सुलगते हुवे दिल की दास्तां है , मेरे रग रग मे यारो धुआं धुआं है।
दर्द गम तीरगी से सजी है महफ़िल, आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इन्तज़ार तो है ,पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मै, शह्र वालों के हाथों मे गिट्टियां है।
ये मकाने मुहब्बत है तिनकों का ,पर ज़माने की नज़रों मे आंधियां है ।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती,मेरी गज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां है।
मुल्क खातिर जवानी मे बे-वफ़ा था,दौरे-पीरी ,शहादत मे मेरी हां है।
कब से बैठा हूं रिन्दगाह मे,दानी अब तो बताओ खुदा कहां है।

मेरा गुलशनश

तू मेरे सुर्ख गुलशन को हरा कर दे , ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन कि मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बडा कर दे।
तसव्वुर मे न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ मे दुआ कर दे ।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे जलवा दिखा कर दे ।
पतन्गों की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्ध्म ज़रा करदे ।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनो को , यहीं तामीर काशी-करबला कर दे ।
भटकना गलीयों मे मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बाव्ररा कर दे ।

जंग मे हार

जंग मे हार हर बार हो ये ज़रूरी नहीं , वक़्त हर वक़्त दुशवार हो ये ज़रूरी नहीं।
गो सिकन्दर के परिवार से है न रिश्ता पर, दिल मे पोरष का किरदार हो ये ज़रूरी नहीं।
फ़िर जलाओ च्ररागे-मुहब्बत को तरतीब से,फ़िर हवायें गुनहगार हों ये ज़रूरी नहीं ।
कश्ती जर्जर है पर पार जाना भी ज़रूरी है , गम समन्दर का बेदार हो ये ज़रूरी नहीं।
इश्क़ क़ुरबानी की खेती है सीखो परवानों से,बस उपज से सरोकार हो ये ज़रूरी नहीं।
झुकना सीखो बुजुर्गों के आगे दरख़्तों सा,हर दम ख़ुदा को नमस्कार हो ये ज़रूरी नहीं।
शमा के दिल में भी आंसुओं की नदी बहती है,ये पतंगों से इज़हार हो ये ज़रूरी नहीं।
मिल गई दीद उनकी मनेगी मेरी ईद,अब ,चांद का छ्त पे दीदार हो ये ज़रूरी नहीं।
मज़हबी नस्लें भी विशवास की भूखी हैं दानी , जंग ही उनको स्वीकार हो ये ज़रूरी नहीं।

तरतीब- ठीक से। बेदार- जाग्रित। दीद-दर्शन।

असमान से दुश्मनी

असमां से मेरी दुश्मनी नहीं है ,
मेरे घर में मगर रौशनी नहीं है।
चाँद को छत पे उतरा तो हूँ ,
साथ उसके मगर चांदनी नहीं है ।
मै खुदा बनने की कर रहाँ हूँ कोशिश ,
मेरे अंदर अभी आदमी नहीं है ।
रोज़ करता हूँ मझधार की इबादत ,
साहिलों के लिए बंदगी नहीं है ।
और की ख्वाहिश में भटक चुके हैं हम सब ,
जबकि हमको ज़रा भी कमी नहीं है। {डॉ संजय दानी दुर्ग}

मन की गली

वो उतरता ही गया दिल की नदी में ,मै तडफ़ती ही रही उसकी खुशी मे।
ढूंढ्ता ही रहा वो तन के महल को,मै घुमाती ही रही मन की गली मे।
धोखा देना,झगडा करना,बदला लेना, करें क्या क्या दो दिनों की ज़िन्दगी मे।
वो खरीदा है मुझे पैसों के दम वो ,सुकूं पाता बेबसों की बेबसी मे ।
हुस्न का मै दोस्त बनना चाहूं लेकिन ,मुझको रखना चाहती वो चाकरी मे।
ये सियासत-दान तो कच्चे घडे हैं , फूट जाते दानी पैसों की कमी मे।

आत्म हत्या

इश्क़ भी इक खुदकुशी है , ज़िन्दगी से दुश्मनी है।
वो बडी मासूम है पर ,मुझको पागल कर चुकी है।
नींद से महरूम हूं मै , सारी दुनिया सो रही है ।
मै पतन्गा फ़िर जलूंगा , शमा की महफ़िल सजी है।
क़त्ल दिल का हो चुका है,पीठ पीछे वो खडी है ।
रुकना किस्मत मे नहीं है, ज़िन्दगी गोया नदी है।
ज़िन्दगी आखिर है क्या बस, बेबसी ही बेबसी है

गांव की नदी

सूखे हुवे दरख़्त सी मेरी जवानी है , हलाकि गांव की नदी मेरी लगानी है |
दिल की गली में जंगली फूलों की खुशबू है , पर मंदिरों से दूर मेरी जिंदगानी है|
तू इश्क की ज़मीं को बदनाम कर चुकी , मेरी वफ़ा की दास्ताँ पर आसमानी है|
मै चाँद के घराने से लाया हूँ इक बहू, तहज़ीब कुछ अंधेरों की उसको सिखानी है|
जो खून अपने मुल्क के खातिर न उबले , वो आदमी का खून नहीं सिर्फ पानी है|"
14 मई को 01:48 बजे · रिपोर्ट करें

बीती सदी

इक सुलगती हुई आँख मुझ को घूरती है, आज से नाराज़ वो बीती सदी है|
क्यों समंदर रोता है खुद की कमी पे, साहिलों से अच्छी उसकी ज़िन्दगी है|
इस बियाबान शहर को कैसे बसायें, भीड़ में भी तनहा हर एक आदमी है|
सरहदों के पार मेरा दिल गया है, अब परिंदों से मेरी भी दोस्ती है|
खौफ खता हूँ उजालों के करम से, बस अंधेरों के सफ़र में अब ख़ुशी है|
14 मई को 01:47 बजे · रिपोर्ट करें

मां

रात के साये से जब भी डरता हूं मै ,अपनी मां को याद बेहद करता हूं मैं।
जल्द ही लोरी सुनाने वो आ जाती ,सुन के लोरी फ़िर चैन से सोता हूं मैं।
सदियों से ऐसी रिवायत चल रही है,तौरे-माज़ी हूं कभी ना बदला हूं मैं।
ज़िन्दगी भर उनको क्यूं मैंने दिया दुख, अपने इस अहसास से अब लड्ता हूं मैं।
मेरे कारण रोज़ मरती है वो जग में , उनके कारण जहां मे आया हूं मैं।
बा-अदब इक शांत दिल वाली नदी वो ,दंभ से अपने,उफ़नता दरिया हूं मैं।
पर मेरी बीबी मुझे ये कहती दानी , ऐसे बूढे बोझ को क्यूं ढोता हूं मैं।
Posted by ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι at 2:44 AM 0 comments
Labels: बीबी
Tuesday, May 18, 2010

प्यार

प्यार
प्यार बस प्यार है दोस्तों , ज़ीस्त का सार है दोस्तों।
चांदनी बेवफ़ा है अगर , चांद की हार है दोस्तों ।
मुल्क मे मूर्खों का राज गर, ग्यान बेकार है दोस्तों।
इश्क़ के हाट मे सुख नहीं, गम का बाज़ार है दोस्तों।
मेरे मन की ये गलती नहीं,दिल गुनहगार है दोस्तों।
दोस्त हूं लहरों का,साहिलों को नमस्कार है दोस्तों ।
फ़िर शहादत पतन्गों की क्यूं,शमा गद्दार है दोस्तों।
हुस्न की चाकरी क्यूं करूं ,इश्क़ खुद्दार है दोस्तों।
गर कहे लैला जां दे दो,तो मज़नू तैयार है दोस्तों।
प्यार मजबूरी है दिल की,हम सब समझदार हैं दोस्तों।

नक्सली वदियां

मेरे भी घर मे रहता है इक बूढा नक्सली,ना जाने क्यूं वो एक ज़माने से है दुखी।
क्या चाहिये उसे वो बताता नहीं मुझे , मैं कैसे जानूं उसको है किस चीज़ की कमी।
शायद नयी फ़िज़ाओं से उसको ग़ुरेज़ है,उसको अजीज़ ग़ुज़रे ज़माने की ज़िन्दगी ।
उपरी चमक दमक उसे बिलकुल नहीं पसन्द,वो धोती कुरता पगडी मे ही पाये खुशी।
जायज़ है उसका सोचना बदलाव किस लिये, जो तेज़ी से बदल चुके वे भी तो हैं दुखी।
ये सोचते हैं हम कि पिछ्ड सा गया है वो,वो हमको देख सोचता है ये कैसी रफ़्तगी ।
शायद ये दो विचारों का टकराव है सनम,हम गो नये ज़माने वो जाती हुई सदी ।
सम्मान उनकी ख्वाहिशों की होनी चाहिये,ना खेला जाये खेल मुसलसल सियासती ।
सरकारें उनके दर्द को समझे सलीके से , बदलाव लाने की करें ना कोई हडबडी ।
जायज़ नहीं कोई भी जबरदस्ती उनके साथ,बहती रहेगी वरना यहां खून की