झुलस चुका है तेरे वादों का चमन हमदम,भरम के पानी से कब तक करूं जतन हमदम।
समन्दरे-वफ़ा ही मेरे इश्क़ की महफ़िल , तेरा दग़ा के किनारों सा अन्जुमन हमदम।
कुम्हारों की दुआ है मेरे प्यार की धरा को,अजीज़ है तुझे क्यूं ग़ैर का वतन हमदम।
शराबे-चश्म पिलाती हो इतनी तुम अदा से,लरजता फिर रहा है मेरा बांकपन हमदम।
ग़मे-चराग़ां से रौशन है मेरी ग़ुरबत ,ख़ुशी-ए-आंधियों कर ले तू गबन हमदम।
सज़ा झुके हुवे पौरष को ना दे वरना लोग,कहेंगे टूटा सिकन्दर का क्यूं वचन हमदम।
क़मर ने चांदनी को नाज़ से रखा पर वो,पहन ली बादलों के इश्क़ का कफ़न हमदम।
ग़रीबों से ख़फ़ा है वो अमीरों पर कुरबान,ज़माने से है ज़माने का ये चलन हमदम ।
बचाना है मुझे अपने अहम को भी दानी,वफ़ा के बदले दग़ा क्यूं करूं सहन हमदम।
अंजुमन- महफ़िल,ग़मे-चराग़ां- चराग़ो के ग़म से। ग़ुर्बत-ग़रीबी।क़मर-चांद।
Thursday 15 July 2010
Monday 12 July 2010
उलझन
उलझनों में मुब्तिला है ज़िन्दगी ,मुश्किलों का सिलसिला है ज़िन्दगी।
बीच सागर में ख़ुशी पाता हूं मैं , साहिले ग़म से जुदा है ज़िन्दगी ।
फ़ांसी फिर मक़्तूल को दे दी गई ,क़ातिलों का फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी।
किसी को तरसाती है ता-ज़िन्दगी,किसी के खातिर ख़ुदा है ज़िन्दगी।
मैं ग़ुलामी हुस्न की क्यूं ना करूं, चाकरी की इक अदा है ज़िन्दगी ।
इक किनारे पे ख़ुशी दूजे पे ग़म ,दो क़दम का फ़ासला है ज़िन्दगी।
मैं हताशा के भंवर में फंस चुका, मेरी सांसों से ख़फ़ा है ज़िन्दगी।
बे-समय भी फ़ूट जाती है कभी ,पानी का इक बुलबुला है ज़िन्दगी।
वादा करके तुम गई हो जब से दूर, तेरी यादों की क़बा है ज़िन्दगी ।
मैं चराग़ो के सफ़र के साथ हूं , बे-रहम दानी हवा है ज़िन्दगी।
बीच सागर में ख़ुशी पाता हूं मैं , साहिले ग़म से जुदा है ज़िन्दगी ।
फ़ांसी फिर मक़्तूल को दे दी गई ,क़ातिलों का फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी।
किसी को तरसाती है ता-ज़िन्दगी,किसी के खातिर ख़ुदा है ज़िन्दगी।
मैं ग़ुलामी हुस्न की क्यूं ना करूं, चाकरी की इक अदा है ज़िन्दगी ।
इक किनारे पे ख़ुशी दूजे पे ग़म ,दो क़दम का फ़ासला है ज़िन्दगी।
मैं हताशा के भंवर में फंस चुका, मेरी सांसों से ख़फ़ा है ज़िन्दगी।
बे-समय भी फ़ूट जाती है कभी ,पानी का इक बुलबुला है ज़िन्दगी।
वादा करके तुम गई हो जब से दूर, तेरी यादों की क़बा है ज़िन्दगी ।
मैं चराग़ो के सफ़र के साथ हूं , बे-रहम दानी हवा है ज़िन्दगी।
Saturday 10 July 2010
Friday 9 July 2010
ईमान
जब से दिलों की गलियों में ईमान बिकते हैं,हां तब से राहे-इश्क़ बियाबान लगते हैं।
ग़म से भरी है दास्तां मेरी जवानी की ,बज़ारे-इश्क़ मे सदा अरमान सड़ते हैं।
साहिल के घर का ज़ुल्म बहुत झेला है मैंने,मंझधार में ही सब्र को परवान चढते हैं।
दिल में नशा शराब का चढता नहीं कभी ,बस साक़ी के लिये ही गिरेबान फटते हैं।
हर काम पहले थोड़ा कठिन लगता है मगर,कोशिश करोगे दिल से तो आसान होते हैं।
ग़म के चराग़ों से मेरा रिश्ता पुराना है ,सुख के हवाओं में कहां इंसान बनते हैं ।
लबरेज़ है हवस से ,मुहब्बत का दरिया अब,बस चद वक़्त के लिये तूफ़ान उठते हैं।
सैयाद जब से बुलबुलों को बेच आया शहर ,तब से दरख़्ते-शहर परेशान दिखते हैं।
इस मुल्क की विशेष पहचान है दुनिया में,हिन्दू के मंदिरों मे मुसलमान झुकते हैं।
ग़म से भरी है दास्तां मेरी जवानी की ,बज़ारे-इश्क़ मे सदा अरमान सड़ते हैं।
साहिल के घर का ज़ुल्म बहुत झेला है मैंने,मंझधार में ही सब्र को परवान चढते हैं।
दिल में नशा शराब का चढता नहीं कभी ,बस साक़ी के लिये ही गिरेबान फटते हैं।
हर काम पहले थोड़ा कठिन लगता है मगर,कोशिश करोगे दिल से तो आसान होते हैं।
ग़म के चराग़ों से मेरा रिश्ता पुराना है ,सुख के हवाओं में कहां इंसान बनते हैं ।
लबरेज़ है हवस से ,मुहब्बत का दरिया अब,बस चद वक़्त के लिये तूफ़ान उठते हैं।
सैयाद जब से बुलबुलों को बेच आया शहर ,तब से दरख़्ते-शहर परेशान दिखते हैं।
इस मुल्क की विशेष पहचान है दुनिया में,हिन्दू के मंदिरों मे मुसलमान झुकते हैं।
Thursday 8 July 2010
सरहदें
क़ाग़ज पे मेरा नाम लिख मिटाते क्यूं हो ,है गर मुहब्बत मुझसे तो छिपाते क्यूं हो।
घर के दहाने इन तवील रातों मे तुम , इक रौश्नी मुझको दिखा बुझाते क्यूं हो।
जब ज़ख़्मों की तसवीर है नदारद दिल में , तो दर्द की महफ़िल अबस सजाते क्यूं हो।
आवारगी तेरा पयाम है दुनिया को , तो दिल ज़माने से कभी लगाते क्यूं हो।
जब ज़िन्दगी क़ुरबान है किसी के खातिर , तो नाम उसका दुनिया को बताते क्यूं हो।
तेरे ग़मों का हिसाब तू ही जाने , लेकर ग़मों का बोझ मुस्कुराते क्यूं हो।
तुम आंसुओं का मोल जानते हो हमदम , तो आंसुओं को बेवजह गिराते क्यूं हो।
ये सरहदें बेबात बांट ली हमने जब ,तुम सरहदों में बार बार आते क्यूं हो।
ख़ुद हौसलों से दूर हो जीवन भर दानी ,तो हौसला मेरा सदा बढाते क्यूं हो।
घर के दहाने इन तवील रातों मे तुम , इक रौश्नी मुझको दिखा बुझाते क्यूं हो।
जब ज़ख़्मों की तसवीर है नदारद दिल में , तो दर्द की महफ़िल अबस सजाते क्यूं हो।
आवारगी तेरा पयाम है दुनिया को , तो दिल ज़माने से कभी लगाते क्यूं हो।
जब ज़िन्दगी क़ुरबान है किसी के खातिर , तो नाम उसका दुनिया को बताते क्यूं हो।
तेरे ग़मों का हिसाब तू ही जाने , लेकर ग़मों का बोझ मुस्कुराते क्यूं हो।
तुम आंसुओं का मोल जानते हो हमदम , तो आंसुओं को बेवजह गिराते क्यूं हो।
ये सरहदें बेबात बांट ली हमने जब ,तुम सरहदों में बार बार आते क्यूं हो।
ख़ुद हौसलों से दूर हो जीवन भर दानी ,तो हौसला मेरा सदा बढाते क्यूं हो।
Wednesday 7 July 2010
तेरा मेरा रिश्ता
तेरा मेरा ये जो रिश्ता है सनम , बस इसी का नाम दुनिया है सनम।
हमको जब तुमने ख़ुदा माना है तो,क्यूं ख़ुदा से अपने पर्दा है सनम।
इश्क़ की अपनी रिवायत होती है ,लैला मजनूं का ये तुहफ़ा है सनम।
ना करूंगा जग में ज़ाहिर तेरा नाम,सच्चे आशिक़ का ये वादा है सनम।
हम हिफ़ाज़त ग़ैरों से कर लेंगे पर,मुल्क को अपनों से ख़तरा है सनम।
बिकने को तैयार है हर इंसां आज,कोई सस्ता कोई महंगा है सनम।
चांदनी फिर बादलों के साथ है ,चांद का दुख किसने समझा है सनम।
है चराग़ो के लिये मेरी दुआ , आंधियों से कौन डरता है सनम।
दिल समन्दर की अदाओं का मुरीद,बेरहम, साहिल का चेहरा है सनम।
इस जगह चोरी न करना इस जगह,कोई अफ़सर कोई नेता है सनम।
मेरा पुस्तैनी मकां है उस तरफ़ , दिल लकीरों से न डरता है सनम।
हमको जब तुमने ख़ुदा माना है तो,क्यूं ख़ुदा से अपने पर्दा है सनम।
इश्क़ की अपनी रिवायत होती है ,लैला मजनूं का ये तुहफ़ा है सनम।
ना करूंगा जग में ज़ाहिर तेरा नाम,सच्चे आशिक़ का ये वादा है सनम।
हम हिफ़ाज़त ग़ैरों से कर लेंगे पर,मुल्क को अपनों से ख़तरा है सनम।
बिकने को तैयार है हर इंसां आज,कोई सस्ता कोई महंगा है सनम।
चांदनी फिर बादलों के साथ है ,चांद का दुख किसने समझा है सनम।
है चराग़ो के लिये मेरी दुआ , आंधियों से कौन डरता है सनम।
दिल समन्दर की अदाओं का मुरीद,बेरहम, साहिल का चेहरा है सनम।
इस जगह चोरी न करना इस जगह,कोई अफ़सर कोई नेता है सनम।
मेरा पुस्तैनी मकां है उस तरफ़ , दिल लकीरों से न डरता है सनम।
Monday 5 July 2010
ज़िन्दगी
इक मुख़्तसर कहानी है अपनी ये ज़िन्दगी , कुछ पन्नों में ग़मों की हवा कुछ में है ख़ुशी।
मेरे दरख़्तों सी वफ़ा पे दुनिया नाज़ करती , किरदार तेरे इश्क़ का बहती हुई नदी।
सबको यहां से जाना है इक शब गुज़ार पर , इक रात भी कभी लगे लाचार इक सदी।
दीवार ख़ोख़ला है तेरे महले-शौक का , मजबूत बेश, सब्र की मेरी ये झोपड़ी।
जीते जी माना तुमने तग़ाफ़ुल नवाज़ा पर , क्यूं रखती है लहद के लिये दिल में बेरुख़ी।
जुर्मों की भीड़ क्यूं है तेरे शहरे-इश्क़ में , लबरेज़ है सुकूं से, दिले-गांव की गली।
मैं रात दिन जलाता हूं दिल के चराग़ों को , पर तूने की हवाओं के ईश्वर से दोस्ती।
मजबूरी तुमने देखी न दरवेशे-इश्क़ की , ख़ुद्दार राही के लिये हर गाम दलदली।
पतवार तेरा,साहिलों के ज़ुल्मों का हबीब , जर्जर मेरी ये कश्ती समन्दर से भिड़ चुकी।
मेरे दरख़्तों सी वफ़ा पे दुनिया नाज़ करती , किरदार तेरे इश्क़ का बहती हुई नदी।
सबको यहां से जाना है इक शब गुज़ार पर , इक रात भी कभी लगे लाचार इक सदी।
दीवार ख़ोख़ला है तेरे महले-शौक का , मजबूत बेश, सब्र की मेरी ये झोपड़ी।
जीते जी माना तुमने तग़ाफ़ुल नवाज़ा पर , क्यूं रखती है लहद के लिये दिल में बेरुख़ी।
जुर्मों की भीड़ क्यूं है तेरे शहरे-इश्क़ में , लबरेज़ है सुकूं से, दिले-गांव की गली।
मैं रात दिन जलाता हूं दिल के चराग़ों को , पर तूने की हवाओं के ईश्वर से दोस्ती।
मजबूरी तुमने देखी न दरवेशे-इश्क़ की , ख़ुद्दार राही के लिये हर गाम दलदली।
पतवार तेरा,साहिलों के ज़ुल्मों का हबीब , जर्जर मेरी ये कश्ती समन्दर से भिड़ चुकी।
Sunday 4 July 2010
पतंगा
जबसे तुमको देखा है ,मरने की बस इच्छा है।
इक नदी बौराई तू , शांत मेरा दरिया है।
तेरी यादें ही सनम ,अब तो मेरी दुनिया है।
साहिलों से डरता हुं , लहरों से अब रिश्ता है।
हमको जब माना ख़ुदा ,हमसे ही क्यूं पर्दा है।
धक्का दे कर अपनों को,आगे हमको बढना है।
दूर जबसे तू गई , बज़्म मेरा तन्हा है।
चोरी मेरी भी अदा , बस तलाशे मौक़ा है ।
मैं पतंगा तो नही ,फिर भी मुझको जलना है।
दोनों की ख़्वाहिश यही,दानी से बस मिलना है।
इक नदी बौराई तू , शांत मेरा दरिया है।
तेरी यादें ही सनम ,अब तो मेरी दुनिया है।
साहिलों से डरता हुं , लहरों से अब रिश्ता है।
हमको जब माना ख़ुदा ,हमसे ही क्यूं पर्दा है।
धक्का दे कर अपनों को,आगे हमको बढना है।
दूर जबसे तू गई , बज़्म मेरा तन्हा है।
चोरी मेरी भी अदा , बस तलाशे मौक़ा है ।
मैं पतंगा तो नही ,फिर भी मुझको जलना है।
दोनों की ख़्वाहिश यही,दानी से बस मिलना है।
Friday 2 July 2010
सज़ा दो
मेरे क़ातिल का मुझे कोई पता दो , या उसे मेरी तरफ़ से दुआ दो।
मैं चराग़ों की हिफ़ाज़त कर रहा हूं ,बात ये सरकश हवाओं को बता दो।
बेवफ़ा कह के घटाओ मत मेरा कद, है वफ़ा की चाह तो ख़ुद भी वफ़ा दो।
छोड़ कर जाने के पहले ऐ सितमगर,इक अदा सच्ची मुहब्बत की दिखा दो।
जीते जी गर दूरी ज़ायज थी जहां में, कांधा तो मेरे जनाज़े को लगा दो।
ये किनारे बेरहम हैं बदगुमां हैं , कश्तियों, मंझधार को अपनी बना लो।
चांदनी से चांद की इज़्ज़त है जग मे , रौशनी दो या अंधेरों की सज़ा दो।
ज़िन्दगी कुर्बान है कदमों मे तेरे , ऐ ख़ुदा मरने का मुझको हौसला दो।
प्यार में दरवेशी का आलम है दानी, मिल सको ना तो तसव्वुर की रज़ा दो।
मैं चराग़ों की हिफ़ाज़त कर रहा हूं ,बात ये सरकश हवाओं को बता दो।
बेवफ़ा कह के घटाओ मत मेरा कद, है वफ़ा की चाह तो ख़ुद भी वफ़ा दो।
छोड़ कर जाने के पहले ऐ सितमगर,इक अदा सच्ची मुहब्बत की दिखा दो।
जीते जी गर दूरी ज़ायज थी जहां में, कांधा तो मेरे जनाज़े को लगा दो।
ये किनारे बेरहम हैं बदगुमां हैं , कश्तियों, मंझधार को अपनी बना लो।
चांदनी से चांद की इज़्ज़त है जग मे , रौशनी दो या अंधेरों की सज़ा दो।
ज़िन्दगी कुर्बान है कदमों मे तेरे , ऐ ख़ुदा मरने का मुझको हौसला दो।
प्यार में दरवेशी का आलम है दानी, मिल सको ना तो तसव्वुर की रज़ा दो।
Thursday 1 July 2010
बे-वफ़ाई
अब बेवफ़ाई, इश्क़ का दस्तूर है , राहे-मुहब्बत दर्द से भरपूर है।
बारिश का मौसम रुख़ पे आया इस तरह,ज़ुल्फ़ों का तेरा दरिया भी मग़रूर है।
ग़म के चमन को रोज़ सजदे करता हूं ,पतझड़ के व्होठों में मेरा ही नूर है।
इस झोपड़ी की यादों में इक ख़ुशबू है ,महलों के रिश्ते भी सनम नासूर हैं।
दिल के समन्दर में वफ़ा की कश्ती है , आंख़ों के साग़र को हवस मन्जूर है।
जब से नदी के पास ये दिल बैठा है , मेरी रगों की प्यास मुझसे दूर है।
चालें सियासत की, तेरे वादों सी , जनता उलझने को सदा मजबूर है।
ग़म के चराग़ो को जला कर बैठा हूं , अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है।
दिल राम को तरज़ीह देता है मगर , मन रावणी क्रित्यों में मख़मूर है।
बारिश का मौसम रुख़ पे आया इस तरह,ज़ुल्फ़ों का तेरा दरिया भी मग़रूर है।
ग़म के चमन को रोज़ सजदे करता हूं ,पतझड़ के व्होठों में मेरा ही नूर है।
इस झोपड़ी की यादों में इक ख़ुशबू है ,महलों के रिश्ते भी सनम नासूर हैं।
दिल के समन्दर में वफ़ा की कश्ती है , आंख़ों के साग़र को हवस मन्जूर है।
जब से नदी के पास ये दिल बैठा है , मेरी रगों की प्यास मुझसे दूर है।
चालें सियासत की, तेरे वादों सी , जनता उलझने को सदा मजबूर है।
ग़म के चराग़ो को जला कर बैठा हूं , अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है।
दिल राम को तरज़ीह देता है मगर , मन रावणी क्रित्यों में मख़मूर है।
Wednesday 30 June 2010
वादों का सफ़र
तेरे वादों का सफ़र थमने लगा है ,मेरा दिल ये मुन्तज़र डर सा गया है।
ग़म चराग़ों का उठाऊं रात दिन मैं , पर हवाओं से तेरा टांका भिड़ा है ।
दिल वफ़ा के बरिशों से तर-ब-तर है, बे-वफ़ाई,तेरे दामन की फ़िज़ा है।
क्यूं हवस की गलियों मे तुम घूमती हो,सब्र का रस्ता सुकूं से जब भरा है।
मैं ग़रीबी की गली में ख़ुश्फ़हम हूं ,तू अमीरी कें मकां में भी डरा है।
चांदनी को चांद से गर प्यार है,तो ,आसमानी ज़ुल्मों से लड़ने में क्या है।
बिल्डरों का राज है अब इस वतन में, झोपड़ी का हौसला फिर भी खड़ा है ।
डूबना है हुस्न के सागर में मुझको , टूटी फूटी कश्ती है पर हौसला है।
क्रेज़ मोबाइल का है अब आसमां पे ,हाय चिठ्ठी पत्री की सांसें फ़ना है।
ग़म चराग़ों का उठाऊं रात दिन मैं , पर हवाओं से तेरा टांका भिड़ा है ।
दिल वफ़ा के बरिशों से तर-ब-तर है, बे-वफ़ाई,तेरे दामन की फ़िज़ा है।
क्यूं हवस की गलियों मे तुम घूमती हो,सब्र का रस्ता सुकूं से जब भरा है।
मैं ग़रीबी की गली में ख़ुश्फ़हम हूं ,तू अमीरी कें मकां में भी डरा है।
चांदनी को चांद से गर प्यार है,तो ,आसमानी ज़ुल्मों से लड़ने में क्या है।
बिल्डरों का राज है अब इस वतन में, झोपड़ी का हौसला फिर भी खड़ा है ।
डूबना है हुस्न के सागर में मुझको , टूटी फूटी कश्ती है पर हौसला है।
क्रेज़ मोबाइल का है अब आसमां पे ,हाय चिठ्ठी पत्री की सांसें फ़ना है।
Thursday 24 June 2010
नामा
लिख मौत के नाम का नामा तेरे घर को ढूंढता हूं ,ग़म से भरा क़तरा हूं अपने समन्दर को ढूंढता हूं।
इक जीत कर जंग क्यूं दिल अभिमान से लबरेज़ तेरा, मैं भी शहंशाह पोरष हूं सिकन्दर को ढूंढ्ता हूं ।
अपनों की मेरी बुलंदी मेरे ही दम से आसमां पे , सबका मुकद्दर सजा अपने मुकद्दर को ढूंढता हूं ।
जब पास थी तवज्जो दे सका ना हमसफ़र को , जब जा चुकी दूर तो उसके तस्व्वुर को ढूंढ्ता हूं।
हमने बनाया जिन्हें जिनके कारण हमने की लड़ाई , यारो उसी बे-ज़ुबां मजबूर ईशवर को ढूंढ्ता हूं।
ज़र जाह ऐसा कमाया, रक्स रखता है ज़माना , अब चाह पाई सुकूं की तो कलन्दर को ढूंढ्ता हूं।
हर रात मैंने अंधेरों के दम से डकैती की दानी , घर में डकैती पड़ी तो मुनव्वर को ढूंढ्ता हूं।
नामा ॥ख़त॥ ज़र-धन॥ जाह-इज़्ज़त॥ रक्स-इर्ष्या॥ मुनव्वर -प्रकाशमान शय॥
इक जीत कर जंग क्यूं दिल अभिमान से लबरेज़ तेरा, मैं भी शहंशाह पोरष हूं सिकन्दर को ढूंढ्ता हूं ।
अपनों की मेरी बुलंदी मेरे ही दम से आसमां पे , सबका मुकद्दर सजा अपने मुकद्दर को ढूंढता हूं ।
जब पास थी तवज्जो दे सका ना हमसफ़र को , जब जा चुकी दूर तो उसके तस्व्वुर को ढूंढ्ता हूं।
हमने बनाया जिन्हें जिनके कारण हमने की लड़ाई , यारो उसी बे-ज़ुबां मजबूर ईशवर को ढूंढ्ता हूं।
ज़र जाह ऐसा कमाया, रक्स रखता है ज़माना , अब चाह पाई सुकूं की तो कलन्दर को ढूंढ्ता हूं।
हर रात मैंने अंधेरों के दम से डकैती की दानी , घर में डकैती पड़ी तो मुनव्वर को ढूंढ्ता हूं।
नामा ॥ख़त॥ ज़र-धन॥ जाह-इज़्ज़त॥ रक्स-इर्ष्या॥ मुनव्वर -प्रकाशमान शय॥
Sunday 20 June 2010
बुलबुल
तेरे तस्व्वुर ने किया पागल मुझे ,कोई दवा भी है नहीं हासिल मुझे।
किरदार मेरा हो चुका दरवेश सा, अपनी खुशी की पहना दे पायल मुझे।
ज़ख्मों की बारिश से बचूं कैसे सनम,प्यारा है तेरी गलियों का दलदल मुझे।
कश्ती मेरी लहरों की दीवानी हुई , मदमस्त साहिल ने किया घायल मुझे ।
तेरी अदाओं ने मुझे मारा है पर , दुनिया समझती अपना ही क़ातिल मुझे।
या मेरी तू चारागरी कर ठीक से , साबूत लौटा दे, या मेरा दिल मुझे ।
झुकना सिखाया वीर पोरष ने मुझे, दंभी सिकन्दर,ना समझ असफ़ल मुझे।
मन्ज़ूर है तेरी ग़ुलामी बा-अदब , है जान से प्यारा तेरा जंगल मुझे ।
तू खुदगरज़ सैयाद ,दानी इश्क़ में, पर मत समझना बेवफ़ा बुलबुल मुझे।
किरदार मेरा हो चुका दरवेश सा, अपनी खुशी की पहना दे पायल मुझे।
ज़ख्मों की बारिश से बचूं कैसे सनम,प्यारा है तेरी गलियों का दलदल मुझे।
कश्ती मेरी लहरों की दीवानी हुई , मदमस्त साहिल ने किया घायल मुझे ।
तेरी अदाओं ने मुझे मारा है पर , दुनिया समझती अपना ही क़ातिल मुझे।
या मेरी तू चारागरी कर ठीक से , साबूत लौटा दे, या मेरा दिल मुझे ।
झुकना सिखाया वीर पोरष ने मुझे, दंभी सिकन्दर,ना समझ असफ़ल मुझे।
मन्ज़ूर है तेरी ग़ुलामी बा-अदब , है जान से प्यारा तेरा जंगल मुझे ।
तू खुदगरज़ सैयाद ,दानी इश्क़ में, पर मत समझना बेवफ़ा बुलबुल मुझे।
Saturday 19 June 2010
तेरी ज़ुल्फ़ें
तेरी ज़ुल्फ़ों की फ़िज़ाओं से घिरा हूं ,बेअता बारिश को सजदे कर रहा हूं ।
ये मुहब्बत भी अंधेरी इक गली है ,ठोकरें खाने अकेले चल पड़ा हूं।
तेरी आंखों की नदी भी बेसुकूं है ,दर्द के दरिया में फ़िर भी डूबता हूं ।
सांसें ये कुरबान हैं तेरी हंसी पे ,मैं पतंगा, शमा के घर पे खड़ा हूं ।
फ़िर चरागों का हवाओं से मिलन है, क़ब्र अपना ,अपने हाथों खोदता हूं।
आंखों पे काजल लगाया ना करो , मैं उजालों की निज़ामत में फ़ंसा हूं ।
सरहदों की बंदगी से डरते हो क्यूं , दुश्मनों के कारवां से जा मिला हूं ।
वो दगाबाज़ों के मंदिर में फ़ंसी है , मैं वफ़ा की राह में तनहा हुआ हूं ।
सुर्ख़ तेरे व्होंठ माशा अल्ला दानी , मैं नदी के तट पे प्यासा मरा हूं ।
ये मुहब्बत भी अंधेरी इक गली है ,ठोकरें खाने अकेले चल पड़ा हूं।
तेरी आंखों की नदी भी बेसुकूं है ,दर्द के दरिया में फ़िर भी डूबता हूं ।
सांसें ये कुरबान हैं तेरी हंसी पे ,मैं पतंगा, शमा के घर पे खड़ा हूं ।
फ़िर चरागों का हवाओं से मिलन है, क़ब्र अपना ,अपने हाथों खोदता हूं।
आंखों पे काजल लगाया ना करो , मैं उजालों की निज़ामत में फ़ंसा हूं ।
सरहदों की बंदगी से डरते हो क्यूं , दुश्मनों के कारवां से जा मिला हूं ।
वो दगाबाज़ों के मंदिर में फ़ंसी है , मैं वफ़ा की राह में तनहा हुआ हूं ।
सुर्ख़ तेरे व्होंठ माशा अल्ला दानी , मैं नदी के तट पे प्यासा मरा हूं ।
Friday 18 June 2010
कहानी
मुह्ब्बत की कहानी मैं सुनाता हूं, अदावत की गली में मैं न जाता हूं।
किताबे-दिल अटी तेरी लकीरों से , लकीरों की जबीं मैं ना सजाता हूं ।
सताया हूं हसीनों की नज़ाकत का, मज़ारे- इश्क़ से अब खौफ़ खाता हूं।
ग़रीबों के मुहल्ले का निवासी हूं , अमीरों का महल मैं ही सजाता हूं।
शराबी को दुआवों से नहीं मतलब,रहम की बातों से अब डर सा जाता हूं।
तुम्हें देखा हूं जब से बे-सुकूं हूं मैं , तड़फ़ को अपनी दुनिया से छिपाता हूं।
चराग़ो सा ये दिल मासूम है फ़िर भी, मैं पागल आंधियों को आज़माता हूं ।
किनारे खुदगरज़ हैं इसलिये दानी , वफ़ायें मैं समन्दर से निभाता हूं ।
किताबे-दिल अटी तेरी लकीरों से , लकीरों की जबीं मैं ना सजाता हूं ।
सताया हूं हसीनों की नज़ाकत का, मज़ारे- इश्क़ से अब खौफ़ खाता हूं।
ग़रीबों के मुहल्ले का निवासी हूं , अमीरों का महल मैं ही सजाता हूं।
शराबी को दुआवों से नहीं मतलब,रहम की बातों से अब डर सा जाता हूं।
तुम्हें देखा हूं जब से बे-सुकूं हूं मैं , तड़फ़ को अपनी दुनिया से छिपाता हूं।
चराग़ो सा ये दिल मासूम है फ़िर भी, मैं पागल आंधियों को आज़माता हूं ।
किनारे खुदगरज़ हैं इसलिये दानी , वफ़ायें मैं समन्दर से निभाता हूं ।
Thursday 17 June 2010
रथ के पहिये
दिल रोया ना आंखें बरसीं ,तुम आये ना सांसें ठहरीं।
ख्वाबों पर भी तेरा बस है , तनहाई में तू ही दिखती।
मिल जाये जो दीद तुम्हारी ,कल ईद हमारी भी मनती।
मजबूत सफ़ीना है तेरा , जर्जर सी है मेरी कश्ती ।
मन्ज़ूर मुझे डूबना लेकिन , दिल की नदियां है कहां गहरी।
सब्र चराग़ों सा रखता मैं , ज़ुल्मी हवायें तुमसे डरतीं ।
अर्श सियासत की छोड़ न तू , मर जायेगी जनता प्यासी ।
वादा तूने तोडा है पर , तुहमत में है मेरी बस्ती ।
तेरा घर मेरा मंदिर है , मेरी जान वहीं है अटकी।
रथ के दो पहिये हम दोनों , तू ही हरदम आगे चलती।
ख्वाबों पर भी तेरा बस है , तनहाई में तू ही दिखती।
मिल जाये जो दीद तुम्हारी ,कल ईद हमारी भी मनती।
मजबूत सफ़ीना है तेरा , जर्जर सी है मेरी कश्ती ।
मन्ज़ूर मुझे डूबना लेकिन , दिल की नदियां है कहां गहरी।
सब्र चराग़ों सा रखता मैं , ज़ुल्मी हवायें तुमसे डरतीं ।
अर्श सियासत की छोड़ न तू , मर जायेगी जनता प्यासी ।
वादा तूने तोडा है पर , तुहमत में है मेरी बस्ती ।
तेरा घर मेरा मंदिर है , मेरी जान वहीं है अटकी।
रथ के दो पहिये हम दोनों , तू ही हरदम आगे चलती।
Wednesday 16 June 2010
दिल की दास्तां
ये सुलगते हुवे दिल की दास्तां है, , मेरे रग रग में यारों धुआं धुआं है ।
दर्द ग़म तीरगी से सजी है महफ़िल , आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इंतज़ार तो है , पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मैं , शहर वालों के हाथों में गिट्टियां हैं।
ये मकाने-मुहब्बत है तिनकों का पर, अब ज़माने की नज़रों में आंधियां हैं।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती , मेरी ग़ज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है ।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां हैं ।
मुल्क खातिर जवानी में बेवफ़ा था, दौरे-पीरी ,शहादत में मेरी हां है ।
सजदे में बैठा हूं रिन्दगाह में मैं , दानी अब तो बताओ खुदा कहां है ।
तिरगी- अंधेरा। पासबां-रक्छख । तामीर- बना। दौरे-पीरी-बुढापे का दौर।
रिन्दगाह-शराबखाना
दर्द ग़म तीरगी से सजी है महफ़िल , आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इंतज़ार तो है , पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मैं , शहर वालों के हाथों में गिट्टियां हैं।
ये मकाने-मुहब्बत है तिनकों का पर, अब ज़माने की नज़रों में आंधियां हैं।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती , मेरी ग़ज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है ।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां हैं ।
मुल्क खातिर जवानी में बेवफ़ा था, दौरे-पीरी ,शहादत में मेरी हां है ।
सजदे में बैठा हूं रिन्दगाह में मैं , दानी अब तो बताओ खुदा कहां है ।
तिरगी- अंधेरा। पासबां-रक्छख । तामीर- बना। दौरे-पीरी-बुढापे का दौर।
रिन्दगाह-शराबखाना
Tuesday 15 June 2010
सूर्ख गुलशन
तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे , ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को , तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब , मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो , शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को , यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को , तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब , मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो , शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को , यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी
Sunday 13 June 2010
दर्दे-दिल
दर्दे- दिल के अब नज़ारे नहीं होते , आजकल उनके इशारे नहीं होते ।
छोड़ कर जबसे गई तुम, कसम तेरी ,अब तसव्वुर भी तुमहारे नहीं होते ।
गर पतंगे बे-खुदी मे नहीं जीते , शमा मे इतने शरारे नहीं होते ।
जीत कर भी हारना है मुहब्बत में , जंग में इतने खसारे नहीं होते ।
है हिदायत उस खुदा की ,करो उनकी तुम मदद जिनके सहारे नहीं होते ।
ये दग़ाबाज़ी घरों से हुई अपनी , वरना हम भी जंग हारे नहीं होते ।
ज़ख्म भी गहरा दर्द भी तेज़ है वरना, दुश्मनों को हुम पुकारे नहीं होते ।
रो रही है धरती धूल धुआं कचरा से , आजकल मौसम इतने करारे नहीं होते।
ज़ीस्त की कश्ती चली जनिबे सागर , इस सफ़र में फ़िर किनारे नहीं होते ।
हुस्न से गर रब्त रखते नहीं दानी , तो जीवन भर हुम अभागे नहीं होते।
तसव्वुर- यादें शरारे=आग खसारे -नुकसान ज़ीस्त--जीवन जानिबे सागर-सागर की ओर।
रब्त =संबंध
छोड़ कर जबसे गई तुम, कसम तेरी ,अब तसव्वुर भी तुमहारे नहीं होते ।
गर पतंगे बे-खुदी मे नहीं जीते , शमा मे इतने शरारे नहीं होते ।
जीत कर भी हारना है मुहब्बत में , जंग में इतने खसारे नहीं होते ।
है हिदायत उस खुदा की ,करो उनकी तुम मदद जिनके सहारे नहीं होते ।
ये दग़ाबाज़ी घरों से हुई अपनी , वरना हम भी जंग हारे नहीं होते ।
ज़ख्म भी गहरा दर्द भी तेज़ है वरना, दुश्मनों को हुम पुकारे नहीं होते ।
रो रही है धरती धूल धुआं कचरा से , आजकल मौसम इतने करारे नहीं होते।
ज़ीस्त की कश्ती चली जनिबे सागर , इस सफ़र में फ़िर किनारे नहीं होते ।
हुस्न से गर रब्त रखते नहीं दानी , तो जीवन भर हुम अभागे नहीं होते।
तसव्वुर- यादें शरारे=आग खसारे -नुकसान ज़ीस्त--जीवन जानिबे सागर-सागर की ओर।
रब्त =संबंध
Saturday 12 June 2010
तशनगी
रात भर बेबसी सी होती है , सुबह फ़िर तशनगी सी होती है।
फ़ूलों में खुशबू अब नहीं होते ,धूप मे भी नमी सी होती है।
अपनी खुशियां सुकूं नहीं देती , तेरे ग़म से खुशी सी होती है ।
मैं शराबी नहीं मगर तुझको , देखकर मयकशी सी होती है ।
मुल्क में बहरों की सियासत है ,हर सदा अनसुनी सी होती है।
पानियों का मुहाल है रुकना , ज़िन्दगी भी नदी सी होती है।
सामने हुस्न जब भी आती है , कल्ब में खलबली सी होती है।
गर जलावो मशाले ग़म त्तो ही, बा-अदब शाइरी सी होती है।
बंद इक राह तो खुलेगी नई , मौत भी ज़िन्दगी सी होती है।
सरहदों के सवाल पर दानी , क्यूं नसें बावरी सी होती हैं ।
फ़ूलों में खुशबू अब नहीं होते ,धूप मे भी नमी सी होती है।
अपनी खुशियां सुकूं नहीं देती , तेरे ग़म से खुशी सी होती है ।
मैं शराबी नहीं मगर तुझको , देखकर मयकशी सी होती है ।
मुल्क में बहरों की सियासत है ,हर सदा अनसुनी सी होती है।
पानियों का मुहाल है रुकना , ज़िन्दगी भी नदी सी होती है।
सामने हुस्न जब भी आती है , कल्ब में खलबली सी होती है।
गर जलावो मशाले ग़म त्तो ही, बा-अदब शाइरी सी होती है।
बंद इक राह तो खुलेगी नई , मौत भी ज़िन्दगी सी होती है।
सरहदों के सवाल पर दानी , क्यूं नसें बावरी सी होती हैं ।
Friday 11 June 2010
दुशमनी
आईनों से नहीं है दुशमनी मेरी , अक्श से अपनी डरती ज़िन्दगी मेरी।
हुस्न ही है मुसीबत का सबब मेरा , क्यूं इबादत करे फ़िर बे-खुदी मेरी ।
साहिलों की अदा मंझधार के दम से , लहरों को पेश हरदम बन्दगी मेरी ।
घर वतन छोड़ आया हुस्न के पीछे , आज खुद पे हंसे सरकशी मेरी ।
सूर्य से क्यूं नज़र लड़ाई थी ,है खफ़ा नज़रों से अब रौशनी मेरी ।
सब्ज गुलशन समझ बैठा मै सहरा को , अब कहां से बुझेगी तशनगी मेरी।
शमा के प्यार मे मै जल चुका इतना ,मर के अब रो रही है खुदकुशी मेरी ।
मै बड़ी से बड़ी खुशियों को पकड़ लाया , दूर जाती गई छोटी खुशी मेरी।
तू नहीं तो नशा कफ़ूर है दानी ,इक नज़र ही तुम्हरी मयकशी मेरी ।
6 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
हुस्न ही है मुसीबत का सबब मेरा , क्यूं इबादत करे फ़िर बे-खुदी मेरी ।
साहिलों की अदा मंझधार के दम से , लहरों को पेश हरदम बन्दगी मेरी ।
घर वतन छोड़ आया हुस्न के पीछे , आज खुद पे हंसे सरकशी मेरी ।
सूर्य से क्यूं नज़र लड़ाई थी ,है खफ़ा नज़रों से अब रौशनी मेरी ।
सब्ज गुलशन समझ बैठा मै सहरा को , अब कहां से बुझेगी तशनगी मेरी।
शमा के प्यार मे मै जल चुका इतना ,मर के अब रो रही है खुदकुशी मेरी ।
मै बड़ी से बड़ी खुशियों को पकड़ लाया , दूर जाती गई छोटी खुशी मेरी।
तू नहीं तो नशा कफ़ूर है दानी ,इक नज़र ही तुम्हरी मयकशी मेरी ।
6 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
Wednesday 9 June 2010
मेरा सफ़र
रात उम्मीद से भारी है , सुबह होने नहीं वाली है।
मुश्किलों से भरा है सफ़र ,आज ज़ख्मों की दीवाली है।
मैं चरागों का दरबान हूं , वो हवाओं की घरवाली है।
क़ातिलों को ज़मानत मिली , न्याय मक़तूल ने पा ली है।
मै खुदा को कहां ढूढूं अब , मन्दिरों मे भी मक्कारी है।
सुख समन्दर मे पाता हूं मै , दिल किनारों का सरकारी है।
क्यूं रखूं चांदनी से वफ़ा , बे -वफ़ाई से वो हारी है।
लहरों का सर झुकाने चली , मेरी कश्ती खुरापाती है।
झोपड़ी रास आती मुझे , महलों का दिल अहंकारी है।
गो चढाई पहाड़ों सी है , पैरों की ज़ुल्फ़ें मतवाली हैं।
पड़ चुके पैरों मे छाले गो , फ़िर भी मेरा सफ़र ज़ारी है।
मुश्किलों से भरा है सफ़र ,आज ज़ख्मों की दीवाली है।
मैं चरागों का दरबान हूं , वो हवाओं की घरवाली है।
क़ातिलों को ज़मानत मिली , न्याय मक़तूल ने पा ली है।
मै खुदा को कहां ढूढूं अब , मन्दिरों मे भी मक्कारी है।
सुख समन्दर मे पाता हूं मै , दिल किनारों का सरकारी है।
क्यूं रखूं चांदनी से वफ़ा , बे -वफ़ाई से वो हारी है।
लहरों का सर झुकाने चली , मेरी कश्ती खुरापाती है।
झोपड़ी रास आती मुझे , महलों का दिल अहंकारी है।
गो चढाई पहाड़ों सी है , पैरों की ज़ुल्फ़ें मतवाली हैं।
पड़ चुके पैरों मे छाले गो , फ़िर भी मेरा सफ़र ज़ारी है।
Tuesday 8 June 2010
तबस्सुम
तेरे व्होंठो पे जब भी तबस्सुम दिखे ,मेरे दिल मे ग़ुनाहों का मौसम बने।
गेसुयें तेरी लहराती है इस तरह , गोया बारिश के लश्कर का परचम तने।
तेरी तस्वीर को जब भी शैदा करूं , तो मेरी आंखों से सूर्ख शबनम बहे ।
दूर हूं तुझसे पर ख्वाहिशे दिल यही , दिल मे तू ही रहे या तेरा ग़म रहे ।
तेरे चश्मे समन्दर का है यूं नशा , इस शराबी के पतवारों मे दम दिखे ।
चांदनी बेवफ़ाई न कर और कुछ , चांद का कारवां फ़िर न गुमसुम चले।
ईद दीवाली दोनों मिल के मनाया करें, हश्र तक अपना मजबूत संगम रहे।
मैं चराग़ों की ज़मानत ले लूं सनम , गर हवायें तेरी सर पे हरदम बहे ।
मेरी दरवेशी पे कुछ तो तू खा रहम, खिड़कियों मे ही अब अक्शे-पूनम सजे।
2 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
गेसुयें तेरी लहराती है इस तरह , गोया बारिश के लश्कर का परचम तने।
तेरी तस्वीर को जब भी शैदा करूं , तो मेरी आंखों से सूर्ख शबनम बहे ।
दूर हूं तुझसे पर ख्वाहिशे दिल यही , दिल मे तू ही रहे या तेरा ग़म रहे ।
तेरे चश्मे समन्दर का है यूं नशा , इस शराबी के पतवारों मे दम दिखे ।
चांदनी बेवफ़ाई न कर और कुछ , चांद का कारवां फ़िर न गुमसुम चले।
ईद दीवाली दोनों मिल के मनाया करें, हश्र तक अपना मजबूत संगम रहे।
मैं चराग़ों की ज़मानत ले लूं सनम , गर हवायें तेरी सर पे हरदम बहे ।
मेरी दरवेशी पे कुछ तो तू खा रहम, खिड़कियों मे ही अब अक्शे-पूनम सजे।
2 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
Monday 7 June 2010
मेरी दिशा
दिशाओं से मेरी दिशा पूछ लेना , सितारों से मेरा पता पूछ लेना ।
सफ़र मे अंधेरों का ही है सहारा , उजालों का सर क्यूं फ़िरा पूछ लेना ।
मैं तेरे लिये जान दे सकता भी हूं , मगर दिल में मेरी जगह पूछ लेना।
ज़मीं जाह ज़र की इनायत है लेकिन , सुकूं मुझसे क्यूं है खफ़ा पूछ लेना।
अदावत,बग़ावत, खयानत,सियासत , से इंसानों को क्या मिला पूछ लेना।
चराग़ों की तहज़ीब भाती है मुझको , हवाओं का तुम फ़ैसला पूछ लेना।
अभी न्याय की बस्ती मे मेरा घर है , ग़ुनाहों का दिल क्यूं दुखा पूछ लेना।
फ़लक को झुकाने की कोशिश थी मेरी , फ़लक खुद ही क्यूं झुक गया पूछ लेना ।
समन्दर से मुझको मुहब्बत है दानी, किनारों का तुम फ़लसफ़ा पूछ लेना।
फ़लक=गगन, जाह=सम्मान, ज़र=धन,अदावत=दुशमनी,।
सफ़र मे अंधेरों का ही है सहारा , उजालों का सर क्यूं फ़िरा पूछ लेना ।
मैं तेरे लिये जान दे सकता भी हूं , मगर दिल में मेरी जगह पूछ लेना।
ज़मीं जाह ज़र की इनायत है लेकिन , सुकूं मुझसे क्यूं है खफ़ा पूछ लेना।
अदावत,बग़ावत, खयानत,सियासत , से इंसानों को क्या मिला पूछ लेना।
चराग़ों की तहज़ीब भाती है मुझको , हवाओं का तुम फ़ैसला पूछ लेना।
अभी न्याय की बस्ती मे मेरा घर है , ग़ुनाहों का दिल क्यूं दुखा पूछ लेना।
फ़लक को झुकाने की कोशिश थी मेरी , फ़लक खुद ही क्यूं झुक गया पूछ लेना ।
समन्दर से मुझको मुहब्बत है दानी, किनारों का तुम फ़लसफ़ा पूछ लेना।
फ़लक=गगन, जाह=सम्मान, ज़र=धन,अदावत=दुशमनी,।
मेरी दिशा
दिशाओं से मेरी दिशा पूछ लेना , सितारों से मेरा पता पूछ लेना ।
सफ़र मे अंधेरों का ही है सहारा , उजालों का सर क्यूं फ़िरा पूछ लेना ।
मैं तेरे लिये जान दे सकता भी हूं , मगर दिल में मेरी जगह पूछ लेना।
ज़मीं जाह ज़र की इनायत है लेकिन , सुकूं मुझसे क्यूं है खफ़ा पूछ लेना।
अदावत,बग़ावत, खयानत,सियासत , से इंसानों को क्या मिला पूछ लेना।
चराओं की तहज़ीब भाती है मुझको , हवाओं का तुम फ़ैसला पूछ लेना।
अभी न्याय की बस्ती मे मेरा घर है , ग़ुनाहों का दिल क्यूं दुखा पूछ लेना।
फ़लक को झुकाने की कोशिश थी मेरी , फ़लक खुद ही क्यूं झुक गया पूछ लेना ।
समन्दर से मुझको मुहब्बत है दानी, किनारों का तुम फ़लसफ़ा पूछ लेना।
फ़लक=गगन, जाह=सम्मान, ज़र=धन,अदावत=दुशमनी,।
सफ़र मे अंधेरों का ही है सहारा , उजालों का सर क्यूं फ़िरा पूछ लेना ।
मैं तेरे लिये जान दे सकता भी हूं , मगर दिल में मेरी जगह पूछ लेना।
ज़मीं जाह ज़र की इनायत है लेकिन , सुकूं मुझसे क्यूं है खफ़ा पूछ लेना।
अदावत,बग़ावत, खयानत,सियासत , से इंसानों को क्या मिला पूछ लेना।
चराओं की तहज़ीब भाती है मुझको , हवाओं का तुम फ़ैसला पूछ लेना।
अभी न्याय की बस्ती मे मेरा घर है , ग़ुनाहों का दिल क्यूं दुखा पूछ लेना।
फ़लक को झुकाने की कोशिश थी मेरी , फ़लक खुद ही क्यूं झुक गया पूछ लेना ।
समन्दर से मुझको मुहब्बत है दानी, किनारों का तुम फ़लसफ़ा पूछ लेना।
फ़लक=गगन, जाह=सम्मान, ज़र=धन,अदावत=दुशमनी,।
Sunday 6 June 2010
बेबसी
दिल तेरे ही ग़मों का तलबगार है अब , दर्द गम बे-बसी से मुझे प्यार है अब।
कश्ती-ए-दिल समन्दर मे महफ़ूज़ रहती, खुदगरज़ साहिलों को नमस्कार है अब।
क़ातिलों का अदालत से टांका यूं , गोया मक़्तूल खुद ही ग़ुनहगार है अब।
मैं चरागों को जला कर सर पे रखा हूं , दिल हवाओं से लड़ने तैयार है अब।
क्यूं कयामत अदाओं से ढाती हो हमदम, पास तेरे निगाहों का हथियार है अब।
मेरी कुर्बानी मजनूं से बढ के रहेगी, मेरी लैला हवस मे गिरिफ़्तार है अब।
इश्क़ अब ज़िन्दगी का किनारा नहीं है, बे-वफ़ाई का दरिया है,मंझधार है अब।
उम्र भर रावणी क्रित्य करता रहा मैं, राम का नाम ही पीरी में सार है अब।
दीन की बातें बे-मानी दुनिया में अब, पैसों से दानी सबको सरोकार है अब।
कश्ती-ए-दिल समन्दर मे महफ़ूज़ रहती, खुदगरज़ साहिलों को नमस्कार है अब।
क़ातिलों का अदालत से टांका यूं , गोया मक़्तूल खुद ही ग़ुनहगार है अब।
मैं चरागों को जला कर सर पे रखा हूं , दिल हवाओं से लड़ने तैयार है अब।
क्यूं कयामत अदाओं से ढाती हो हमदम, पास तेरे निगाहों का हथियार है अब।
मेरी कुर्बानी मजनूं से बढ के रहेगी, मेरी लैला हवस मे गिरिफ़्तार है अब।
इश्क़ अब ज़िन्दगी का किनारा नहीं है, बे-वफ़ाई का दरिया है,मंझधार है अब।
उम्र भर रावणी क्रित्य करता रहा मैं, राम का नाम ही पीरी में सार है अब।
दीन की बातें बे-मानी दुनिया में अब, पैसों से दानी सबको सरोकार है अब।
Saturday 5 June 2010
मेरी खुशी तेरी खुशी
मेरी खुशी में तेरी खुशी हो ज़रूरी तो नहीं, तस्वीर दोनों की एक सी हो ज़रूरी तो नहीं।
हर आदमी के दिल में भलाई बुराई साथ है, हर वक़्त ये इन्सां आदमी हो ज़रूरी तो नहीं
कुछ लोग जीते जी मौत की भीख भी मांगते ,अहले-नफ़स में भी ज़िन्दगी हो ज़रूरी तो नहीं।
हम इश्क़ के सागर में सफ़ीना चलाते ही चले, हर शाम साहिल की बन्दगी हो ज़रूरी तो नहीं।
इस बज़्म में आकर वो चली क्यूं गई बेलौस ही, मेरे खुदा की नाराज़गी हो ज़रूरी तो नहीं।
गाहे-ब-गाहे दिल दर्द का स्वाद चखता है मगर , रोते समय आंखों में नमी हो ज़रूरी तो नहीं।
मखमूर बे-गाने शहर को छोड़ हम सहरा चले , जंगे सचाई मे मौत ही हो ज़रूरी तो नहीं।
रिश्ते बनाओ गर तो निभाना ज़रूरी है दानी , वरना पड़ोसी से दोस्ती हो ज़रूरी तो नहीं।
अहले -नफ़स- सांस वाले( जो जी रहें हैं), सफ़ीना-बड़ी नाव।बज़्म-महफ़िल। बेलौस-बिना करण।
मखमूर-खुमार से भरा(नशे मे मस्त)। सहरा- जंगल या रेगिस्तान।
हर आदमी के दिल में भलाई बुराई साथ है, हर वक़्त ये इन्सां आदमी हो ज़रूरी तो नहीं
कुछ लोग जीते जी मौत की भीख भी मांगते ,अहले-नफ़स में भी ज़िन्दगी हो ज़रूरी तो नहीं।
हम इश्क़ के सागर में सफ़ीना चलाते ही चले, हर शाम साहिल की बन्दगी हो ज़रूरी तो नहीं।
इस बज़्म में आकर वो चली क्यूं गई बेलौस ही, मेरे खुदा की नाराज़गी हो ज़रूरी तो नहीं।
गाहे-ब-गाहे दिल दर्द का स्वाद चखता है मगर , रोते समय आंखों में नमी हो ज़रूरी तो नहीं।
मखमूर बे-गाने शहर को छोड़ हम सहरा चले , जंगे सचाई मे मौत ही हो ज़रूरी तो नहीं।
रिश्ते बनाओ गर तो निभाना ज़रूरी है दानी , वरना पड़ोसी से दोस्ती हो ज़रूरी तो नहीं।
अहले -नफ़स- सांस वाले( जो जी रहें हैं), सफ़ीना-बड़ी नाव।बज़्म-महफ़िल। बेलौस-बिना करण।
मखमूर-खुमार से भरा(नशे मे मस्त)। सहरा- जंगल या रेगिस्तान।
Friday 4 June 2010
तमन्नाओं के बादल
तमन्नाओं के बादल में फ़ंसे हैं हम , हवस में मूंद कर आंखें पड़े हैं हम।
ठ्हरता ही नहीं दिल में वफ़ा का जल,दग़ाबाज़ी के चिकने हां घड़े हैं हम।
नहीं हसिल है मेहनत की दुवा हमको ,बिना पुख्ता इरादों के चले हैं हम।
बिना पतवार कश्ती है समन्दर में , मुकद्दर पे भरोसा कर रहे हैं हम ।
न जाने मात्र-भाषा के अदब को हम,विदेशी स्कूलों में मानों पढे हैं हम।
गो रावण की गली मे हम नहीं रहते,मगर कब राम के रस्ते चले हैं हम ।
उजालों का सफ़र तुमको मुबारक़ हो ,अंधेरों के मुसाफ़िर बन चुके हैं हम।
हवाओं से लड़ाई है चरागों की ,हसीनों की ज़मानत ले रहे हैं हम ।
शराबी दिल हमेशा क्यूं बहकता है,कि मौका-ए-विजय को चूकते हैं हम।
2 सेकंड पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
ठ्हरता ही नहीं दिल में वफ़ा का जल,दग़ाबाज़ी के चिकने हां घड़े हैं हम।
नहीं हसिल है मेहनत की दुवा हमको ,बिना पुख्ता इरादों के चले हैं हम।
बिना पतवार कश्ती है समन्दर में , मुकद्दर पे भरोसा कर रहे हैं हम ।
न जाने मात्र-भाषा के अदब को हम,विदेशी स्कूलों में मानों पढे हैं हम।
गो रावण की गली मे हम नहीं रहते,मगर कब राम के रस्ते चले हैं हम ।
उजालों का सफ़र तुमको मुबारक़ हो ,अंधेरों के मुसाफ़िर बन चुके हैं हम।
हवाओं से लड़ाई है चरागों की ,हसीनों की ज़मानत ले रहे हैं हम ।
शराबी दिल हमेशा क्यूं बहकता है,कि मौका-ए-विजय को चूकते हैं हम।
2 सेकंड पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
Thursday 3 June 2010
राहे मुहब्बत
राहे मुहब्बत दर्द से भरर्पूर है, अब बे-वफ़ाई इश्क़ का दस्तूर है।
दिल के समन्दर मे वफ़ा की कश्ती है, आंखों के साग़र को हवस मन्ज़ूर है।
ग़म के चमन की रोज़ सजदे करता हूं, पतझ्ड़ के व्होठों मे मेरा ही नूर है।
बारिश का मौसम रुख पे आया इस तरह, ज़ुल्फ़ों का तेरा साया भी मग़रूर है।
दिल के चरागों को जला कर बैठा हूं , अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है।
जब से नदी के पास ये दिल बैठा है , मेरे सफ़र की प्यास मुझसे दूर है।
दिल राम को तरज़ीह देता है मगर ,मन रावणी क्र्त्यों मे मग़रूर है।
चाले सियासत की तेरी ज़ुल्फ़ों सी है , जनता उलझने को सदा मजबूर है।
दिल के समन्दर मे वफ़ा की कश्ती है, आंखों के साग़र को हवस मन्ज़ूर है।
ग़म के चमन की रोज़ सजदे करता हूं, पतझ्ड़ के व्होठों मे मेरा ही नूर है।
बारिश का मौसम रुख पे आया इस तरह, ज़ुल्फ़ों का तेरा साया भी मग़रूर है।
दिल के चरागों को जला कर बैठा हूं , अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है।
जब से नदी के पास ये दिल बैठा है , मेरे सफ़र की प्यास मुझसे दूर है।
दिल राम को तरज़ीह देता है मगर ,मन रावणी क्र्त्यों मे मग़रूर है।
चाले सियासत की तेरी ज़ुल्फ़ों सी है , जनता उलझने को सदा मजबूर है।
Wednesday 2 June 2010
मजबूरी
मजबूरी कुछ तो होगी जो हमसे जुदा हुवे,तुम इश्क़ की ग़ुनाहों से फ़िर क्यूं खफ़ा हुवे।
तुम ज़िन्दगी निभाती हो जीती कहां हो यार, कर प्यार हमसे ग़ैर के दिल की दुआ हुवे।
मन्ज़ूर है लबों पे समन्दर की आग तुम , तो सर्द साहिलों की हंसी से रज़ा हुवे।
जुर्मे- हवस मे डूबी रही सर से पैर तक।, हम सब्र की अदालतों का फ़ैसला हुवे ।
ता-उम्र तुमने सिर्फ़ अंधेरा दिया मुझे , हम भी उजालों के लिये कब बावरा हुवे।
तक़दीर मे सिपाही बनना था बन गये , पर रंगे-खून पे कभी ना हम फ़िदा हुवे।
जर्जर है इस ग़रीब के छत की कमानियां , बारिश मे राजनीति का हम मुद्दआ हुवे।
महफ़ूज़ है चरागों का दरबार दिल मे इस हम आंधियों के दर्द का भी रास्ता हुवे
a few seconds ago · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
तुम ज़िन्दगी निभाती हो जीती कहां हो यार, कर प्यार हमसे ग़ैर के दिल की दुआ हुवे।
मन्ज़ूर है लबों पे समन्दर की आग तुम , तो सर्द साहिलों की हंसी से रज़ा हुवे।
जुर्मे- हवस मे डूबी रही सर से पैर तक।, हम सब्र की अदालतों का फ़ैसला हुवे ।
ता-उम्र तुमने सिर्फ़ अंधेरा दिया मुझे , हम भी उजालों के लिये कब बावरा हुवे।
तक़दीर मे सिपाही बनना था बन गये , पर रंगे-खून पे कभी ना हम फ़िदा हुवे।
जर्जर है इस ग़रीब के छत की कमानियां , बारिश मे राजनीति का हम मुद्दआ हुवे।
महफ़ूज़ है चरागों का दरबार दिल मे इस हम आंधियों के दर्द का भी रास्ता हुवे
a few seconds ago · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
Tuesday 1 June 2010
मौत की परवाज़
तन्हाई भरी रात मे इक चिड़िये की आवाज़, गो ज़िन्दगी के बादलों में मौत की परवाज़ ।
इस दिल के मुकद्दर मे चरागों का मकां जब, क्यूं फ़िक्र करूं आंधियों की,वो रहें नाराज़।
मै सरहदों पे दोस्ती की करता हूं बातें , अपनों से लड़ाई का यही है मेरा अन्दाज़ ।
तुम जब से अमीरों की ज़मानत मे हो हमदम, ग़ुरबत की अदालत के कलम तबसे हैं नसाज़।
रावण की कहानी का मै ही लिख्ता हूं हर स्क्रिपट,मेरी ही लिखावट से मिले राम को सरताज़।
अभिमान, तुम्हे अपने महल पे है बहुत,तो मुझको भी है अपनी मता-ए-झोपड़ी पर नाज़।
तेरे लिये मैं दुनिया से लड़ सकता हूं दानी, दिल जंगे मुहब्बत मे ज़माने से है ज़ांबाज़।
इस दिल के मुकद्दर मे चरागों का मकां जब, क्यूं फ़िक्र करूं आंधियों की,वो रहें नाराज़।
मै सरहदों पे दोस्ती की करता हूं बातें , अपनों से लड़ाई का यही है मेरा अन्दाज़ ।
तुम जब से अमीरों की ज़मानत मे हो हमदम, ग़ुरबत की अदालत के कलम तबसे हैं नसाज़।
रावण की कहानी का मै ही लिख्ता हूं हर स्क्रिपट,मेरी ही लिखावट से मिले राम को सरताज़।
अभिमान, तुम्हे अपने महल पे है बहुत,तो मुझको भी है अपनी मता-ए-झोपड़ी पर नाज़।
तेरे लिये मैं दुनिया से लड़ सकता हूं दानी, दिल जंगे मुहब्बत मे ज़माने से है ज़ांबाज़।
Monday 31 May 2010
दुश्मने-mulk
कोई रस्ता बचा नहीं है आज, और कुछ सोचना नहीं है आज।
क़त्ल मासूमों का बहुत हो चुका, न्याय का पट खुला नहीं है आज।
पानी सर से उपर पहुंच चुका है, तिनकों का भी पता नहीं है आज्।
उनका ऐलाने-जंग हो चुका पर , अपना जज़्बा दिखा नहीं है आज्।
क्यूं सियासत नसमझे मौत का दर्द, उनका अपना मरा नहीं है आज।
न्याय, अन्याय करके मांग रहे , उनका कोई खुदा नहीं है आज्।
रावणो को न मारा जाये कभी , राम ने ये कहा नही है आज।
सांपों को पालना उचित नहीं है, ज़हर की इन्तहा नही है आज।
पकड़ो या मारो गीदड़ों को,और ,उनकी कोई सज़ा नही है आज्।
देर आये दुरुस्त आये ये , जुमला किसने सुना नही है आज।
गो अंधेरा ज़रा बढा है पर , सूर्य दानी छिपा नहीं है आज।
क़त्ल मासूमों का बहुत हो चुका, न्याय का पट खुला नहीं है आज।
पानी सर से उपर पहुंच चुका है, तिनकों का भी पता नहीं है आज्।
उनका ऐलाने-जंग हो चुका पर , अपना जज़्बा दिखा नहीं है आज्।
क्यूं सियासत नसमझे मौत का दर्द, उनका अपना मरा नहीं है आज।
न्याय, अन्याय करके मांग रहे , उनका कोई खुदा नहीं है आज्।
रावणो को न मारा जाये कभी , राम ने ये कहा नही है आज।
सांपों को पालना उचित नहीं है, ज़हर की इन्तहा नही है आज।
पकड़ो या मारो गीदड़ों को,और ,उनकी कोई सज़ा नही है आज्।
देर आये दुरुस्त आये ये , जुमला किसने सुना नही है आज।
गो अंधेरा ज़रा बढा है पर , सूर्य दानी छिपा नहीं है आज।
Sunday 30 May 2010
सबबे-वफ़ा
दिलों के धड़कने का कुछ तो सबब होगा , गुलों के चटकने क कुछ तो सबब होगा।
वफ़ा और तारीख मे है न रिश्ता पर , वफ़ा के बदलने का कुछ तो सबब होगा ।
सितम ज़ुल्म बेदार रखती है बग़ावत को , रगों के सुलगने का कुछ तो सबब होगा।
शहादत किसे रास आती जवानी में , कि सरहद में मरने का कुछ तो सबब होगा।
कहां खो गया चांद जब बज़्म मे तू आई , क़मर के यूं छिपने क कुछ तो सबब होगा।
खयानत का इल्ज़ाम यूं सहना मुश्किल पर, तुम्हे माफ़ करने का कुछ तो सबब होगा ।
सफ़ीना-समन्दर मे कैसी दोस्ती दानी ,किनारों से बचने का कुछ तो सबब होगा ।
बेदार--jagrit॥ बज़्म-- महफ़िल। क़मर- चांद । सफ़ीना- बड़ी नाव । सबब- वजह -कारण।
।
7 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
वफ़ा और तारीख मे है न रिश्ता पर , वफ़ा के बदलने का कुछ तो सबब होगा ।
सितम ज़ुल्म बेदार रखती है बग़ावत को , रगों के सुलगने का कुछ तो सबब होगा।
शहादत किसे रास आती जवानी में , कि सरहद में मरने का कुछ तो सबब होगा।
कहां खो गया चांद जब बज़्म मे तू आई , क़मर के यूं छिपने क कुछ तो सबब होगा।
खयानत का इल्ज़ाम यूं सहना मुश्किल पर, तुम्हे माफ़ करने का कुछ तो सबब होगा ।
सफ़ीना-समन्दर मे कैसी दोस्ती दानी ,किनारों से बचने का कुछ तो सबब होगा ।
बेदार--jagrit॥ बज़्म-- महफ़िल। क़मर- चांद । सफ़ीना- बड़ी नाव । सबब- वजह -कारण।
।
7 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post
Saturday 29 May 2010
इन्सानियत
इन्सानियत इंसान की पहचान है , रावण सा रहना तो आसान है।
सारे किनारे खुदगरज़ हैं इसलिये , दिल मे समन्दर के लिये सम्मान है।
दिल से चरागों की इबादत करता हूं , अब आंधियों से जंग का ऐलान है।
गाने अदावत के नहीं गाता मैं , मुझको मिलन के गीतो का वरदान है।
मैं बन गया दरवेश तेरे प्यार मे , पर तू हवस के बाडों की ज़िन्दान है ।
तेरा भी परचम फ़हरेगा कल , हिम्मत के आगे क्या दमे-तूफ़ान है।
सारी सियासत सरहदों के खेल में , लाशे सिपाही खेल का सामान है।
सजदे खुदा को करना अच्छी बात है , लेकिन खुदा का अक्स ही इंसान है।
हर आदमी दानी बिकाऊ है यहां , ये सबसे सस्ता देश हिन्दुस्तान है।
सारे किनारे खुदगरज़ हैं इसलिये , दिल मे समन्दर के लिये सम्मान है।
दिल से चरागों की इबादत करता हूं , अब आंधियों से जंग का ऐलान है।
गाने अदावत के नहीं गाता मैं , मुझको मिलन के गीतो का वरदान है।
मैं बन गया दरवेश तेरे प्यार मे , पर तू हवस के बाडों की ज़िन्दान है ।
तेरा भी परचम फ़हरेगा कल , हिम्मत के आगे क्या दमे-तूफ़ान है।
सारी सियासत सरहदों के खेल में , लाशे सिपाही खेल का सामान है।
सजदे खुदा को करना अच्छी बात है , लेकिन खुदा का अक्स ही इंसान है।
हर आदमी दानी बिकाऊ है यहां , ये सबसे सस्ता देश हिन्दुस्तान है।
Friday 28 May 2010
मेरी दुनिया
जब से तुमको देखा है , मरने की क्यूं इछ्छा है ।
इक नदी बौराई तू , शांत मेरा दरिया है ।
मैं पतन्गा तो नहीं , फ़िर भी मुझको जलना है।
तेरी यादें ही सनम , अब तो मेरी दुनिया है।
हमको जब माना खुदा ,हमसे फ़िर क्यूं परदा है।
दूर जब से तू गई , बज़्म मेरा तन्हा है ।
चोरी मेरी भी अदा , बस तलाशे मौक़ा है ।
धक्का देकर अपनों को,हमको आगे बढना है।
दोनों की ख्वाहिश यही , दानी से बस मिलना है।
इक नदी बौराई तू , शांत मेरा दरिया है ।
मैं पतन्गा तो नहीं , फ़िर भी मुझको जलना है।
तेरी यादें ही सनम , अब तो मेरी दुनिया है।
हमको जब माना खुदा ,हमसे फ़िर क्यूं परदा है।
दूर जब से तू गई , बज़्म मेरा तन्हा है ।
चोरी मेरी भी अदा , बस तलाशे मौक़ा है ।
धक्का देकर अपनों को,हमको आगे बढना है।
दोनों की ख्वाहिश यही , दानी से बस मिलना है।
Thursday 27 May 2010
तसव्वुर
तसव्वुर मे जीना ही ज़िन्दगानी है , तमन्नाओं के सहारे रवानी है।
मुक़द्दर मे क्या लिखा कैसे जाने हम, मुसलसल कोशिश सफ़लता की बानी है।
पहाडों सी, खुशियां हासिल हुई है पर , ग़मों की तक़दीर भी आसमानी है ।
समन्दर स्र मेरा मजबूत है रिश्ता , किनारों पर बेबसी की कहानी है ।
चरागों को सर पे रख के मैं चलता हूं, हवाओं को अपनी ताक़त दिखानी है।
हसीनों का साथ पाना है मुझको तो, ग़ुलामों सी अपनी सीरत बनानी है।
मुहब्बत की मुश्किलें जानता हूं मैं , वफ़ायें ता-उम्र दानी निभानी है ।
मुक़द्दर मे क्या लिखा कैसे जाने हम, मुसलसल कोशिश सफ़लता की बानी है।
पहाडों सी, खुशियां हासिल हुई है पर , ग़मों की तक़दीर भी आसमानी है ।
समन्दर स्र मेरा मजबूत है रिश्ता , किनारों पर बेबसी की कहानी है ।
चरागों को सर पे रख के मैं चलता हूं, हवाओं को अपनी ताक़त दिखानी है।
हसीनों का साथ पाना है मुझको तो, ग़ुलामों सी अपनी सीरत बनानी है।
मुहब्बत की मुश्किलें जानता हूं मैं , वफ़ायें ता-उम्र दानी निभानी है ।
हवस के बादल
तू हवस के बादलों से घिरी है , इश्क़ वालों की नदी सूखी पडी है।
गोया रावण राम से डरता है लेकिन ,आज लक्ष्मण के हवाले झोपडी है।
शहर को अपने अमीरों की दुआ है , गाडियों मे लोन की तख्ती लगी है।
बच्चे पागल कह के मेरा पीछा करते,ये फ़कीरी मुझको तुमसे ही मिली है।
मैं सिकन्दर का पुराना साथी हूं पर, आज पोरष के लिये दीवानगी है।
मेरे दिल का ताला लगता भी नहीं , तेरी आंखें साजिशों से भरी है।
दिल का परवाना शहादत दे चुका है , शमा जाने क्यूं अकेले जल रही है ।
चांद पानी मांगने मजबूर है फ़िर , चांदनी की अब्र से जब दोस्ती है ।
शहर मे तेरे अदावत की सडक है ,गांव मे मेरे मुहब्बत की गली है ।
प्रस्तुतकर्ता ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι पर ५:३२ AM
गोया रावण राम से डरता है लेकिन ,आज लक्ष्मण के हवाले झोपडी है।
शहर को अपने अमीरों की दुआ है , गाडियों मे लोन की तख्ती लगी है।
बच्चे पागल कह के मेरा पीछा करते,ये फ़कीरी मुझको तुमसे ही मिली है।
मैं सिकन्दर का पुराना साथी हूं पर, आज पोरष के लिये दीवानगी है।
मेरे दिल का ताला लगता भी नहीं , तेरी आंखें साजिशों से भरी है।
दिल का परवाना शहादत दे चुका है , शमा जाने क्यूं अकेले जल रही है ।
चांद पानी मांगने मजबूर है फ़िर , चांदनी की अब्र से जब दोस्ती है ।
शहर मे तेरे अदावत की सडक है ,गांव मे मेरे मुहब्बत की गली है ।
प्रस्तुतकर्ता ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι पर ५:३२ AM
Tuesday 25 May 2010
JawanI
जवानी जब भी चढती है ,बग़ावत खूब करती है।
मुहब्बत की शिलाओं पर ,वफ़ा की परतें जमती हैं।
रगों मे दर्द बढ्ता है , निगाहें पानी भरती हैं ।
झुलायें, नेकी को कब तक,बदी भी तो मचलती है।
समंदर की शराफ़त बस, किनारों तक उमडती है।
हसीनों की ज़मानत मे,हवस की लौ भडकती है।
परीन्दे को भगाओ मत,वो अपनी बेटी जैसी है।
शराबी के बहकने मे ,कहां साकी की मर्जी है।
चरागों के मकां मे क्यूं,हवायें मस्त रहती हैं।
मुहब्बत की शिलाओं पर ,वफ़ा की परतें जमती हैं।
रगों मे दर्द बढ्ता है , निगाहें पानी भरती हैं ।
झुलायें, नेकी को कब तक,बदी भी तो मचलती है।
समंदर की शराफ़त बस, किनारों तक उमडती है।
हसीनों की ज़मानत मे,हवस की लौ भडकती है।
परीन्दे को भगाओ मत,वो अपनी बेटी जैसी है।
शराबी के बहकने मे ,कहां साकी की मर्जी है।
चरागों के मकां मे क्यूं,हवायें मस्त रहती हैं।
Saturday 22 May 2010
नमाज़
तेरे लबों की जुम्बिशों का शिकार हूं ,तेरी ज़ुबां की साजिशों से तार तार हूं।
कश्ती तेरी जवानी की फ़िर डगमगा रही,जर्जर बुढापे मे भी मैं तेरा किनार हूं
तेरा हवाओं का मकां,मेरी चराग़ों सी तहज़ीब फ़िर भी मिलने को बेकरार हूं।
इज़्ज़त तुमहारे कारवां की सब ही करते हैं,लशकर को सजदा करता ज़मीने ग़ुबार हूं।
अहले ज़माना जादुई शय मानता तुम्हें,मैं तेरे हक़ में उनके लिये ऐतबार हूं।
तेरे चमन की आन को हरदम बचाता हूं, तेरे गुलों से लिपटा दर्दे खार हूं ।
तू मूल संग सूद भी मुझसे वसूल कर, तेरे दुकाने-हुस्न का बेज़ा उधार हूं ।
मेरी नमाज़, मेरे खुदा अब तो कर क़बूल,सदियों से झुकता बंदगी मे बार बार हूं।
जब से तुम्हारी दीद मिली है मुझे सनम,मै अपने ही वजूद से दानी फ़रार हूं।
कश्ती तेरी जवानी की फ़िर डगमगा रही,जर्जर बुढापे मे भी मैं तेरा किनार हूं
तेरा हवाओं का मकां,मेरी चराग़ों सी तहज़ीब फ़िर भी मिलने को बेकरार हूं।
इज़्ज़त तुमहारे कारवां की सब ही करते हैं,लशकर को सजदा करता ज़मीने ग़ुबार हूं।
अहले ज़माना जादुई शय मानता तुम्हें,मैं तेरे हक़ में उनके लिये ऐतबार हूं।
तेरे चमन की आन को हरदम बचाता हूं, तेरे गुलों से लिपटा दर्दे खार हूं ।
तू मूल संग सूद भी मुझसे वसूल कर, तेरे दुकाने-हुस्न का बेज़ा उधार हूं ।
मेरी नमाज़, मेरे खुदा अब तो कर क़बूल,सदियों से झुकता बंदगी मे बार बार हूं।
जब से तुम्हारी दीद मिली है मुझे सनम,मै अपने ही वजूद से दानी फ़रार हूं।
Thursday 20 May 2010
मौत के नाम खत
लिख मौत के नाम का नामा तेरे घर को ढूंढता हूँ
गम से भरा क़तरा हूँ अपने समंदर को ढूंढता हूँ।
इक जीत कर जंग क्यूँ दिल अभिमान से लबरेज़ तेरा ,
मै भी शंशाह पोरुस हूँ सिकंदर को ढूंढता हूँ।
मेरे अपनों की बुलंदी मेरे ही दम से आसमान पे,
सब का मुकद्दर सजा अपने मुकद्दर को ढूंढता हूँ।
हमने जिन्हें बनाया जिनके कारन हमने की लड़ाई
यारों उसी बेजुबान मजबूर ईश्वर को ढूंढता हूँ।
जब साथ थी तवज्जो न दे सका हमसफ़र को
जब जा चुकी दूर तो उसके तसव्वुर को ढूंढता हूँ।
हर रत मैंने अंधेरों के दम से डकैती की दानी ,
घर में डकैती पड़ी तो मुनव्वर को ढूंढता हूँ।
गम से भरा क़तरा हूँ अपने समंदर को ढूंढता हूँ।
इक जीत कर जंग क्यूँ दिल अभिमान से लबरेज़ तेरा ,
मै भी शंशाह पोरुस हूँ सिकंदर को ढूंढता हूँ।
मेरे अपनों की बुलंदी मेरे ही दम से आसमान पे,
सब का मुकद्दर सजा अपने मुकद्दर को ढूंढता हूँ।
हमने जिन्हें बनाया जिनके कारन हमने की लड़ाई
यारों उसी बेजुबान मजबूर ईश्वर को ढूंढता हूँ।
जब साथ थी तवज्जो न दे सका हमसफ़र को
जब जा चुकी दूर तो उसके तसव्वुर को ढूंढता हूँ।
हर रत मैंने अंधेरों के दम से डकैती की दानी ,
घर में डकैती पड़ी तो मुनव्वर को ढूंढता हूँ।
मेरी दास्तां
ये सुलगते हुवे दिल की दास्तां है , मेरे रग रग मे यारो धुआं धुआं है।
दर्द गम तीरगी से सजी है महफ़िल, आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इन्तज़ार तो है ,पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मै, शह्र वालों के हाथों मे गिट्टियां है।
ये मकाने मुहब्बत है तिनकों का ,पर ज़माने की नज़रों मे आंधियां है ।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती,मेरी गज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां है।
मुल्क खातिर जवानी मे बे-वफ़ा था,दौरे-पीरी ,शहादत मे मेरी हां है।
कब से बैठा हूं रिन्दगाह मे,दानी अब तो बताओ खुदा कहां है।
दर्द गम तीरगी से सजी है महफ़िल, आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इन्तज़ार तो है ,पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मै, शह्र वालों के हाथों मे गिट्टियां है।
ये मकाने मुहब्बत है तिनकों का ,पर ज़माने की नज़रों मे आंधियां है ।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती,मेरी गज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां है।
मुल्क खातिर जवानी मे बे-वफ़ा था,दौरे-पीरी ,शहादत मे मेरी हां है।
कब से बैठा हूं रिन्दगाह मे,दानी अब तो बताओ खुदा कहां है।
मेरी दास्तां
ये सुलगते हुवे दिल की दास्तां है , मेरे रग रग मे यारो धुआं धुआं है।
दर्द गम तीरगी से सजी है महफ़िल, आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इन्तज़ार तो है ,पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मै, शह्र वालों के हाथों मे गिट्टियां है।
ये मकाने मुहब्बत है तिनकों का ,पर ज़माने की नज़रों मे आंधियां है ।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती,मेरी गज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां है।
मुल्क खातिर जवानी मे बे-वफ़ा था,दौरे-पीरी ,शहादत मे मेरी हां है।
कब से बैठा हूं रिन्दगाह मे,दानी अब तो बताओ खुदा कहां है।
दर्द गम तीरगी से सजी है महफ़िल, आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इन्तज़ार तो है ,पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मै, शह्र वालों के हाथों मे गिट्टियां है।
ये मकाने मुहब्बत है तिनकों का ,पर ज़माने की नज़रों मे आंधियां है ।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती,मेरी गज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां है।
मुल्क खातिर जवानी मे बे-वफ़ा था,दौरे-पीरी ,शहादत मे मेरी हां है।
कब से बैठा हूं रिन्दगाह मे,दानी अब तो बताओ खुदा कहां है।
मेरा गुलशनश
तू मेरे सुर्ख गुलशन को हरा कर दे , ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन कि मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बडा कर दे।
तसव्वुर मे न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ मे दुआ कर दे ।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे जलवा दिखा कर दे ।
पतन्गों की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्ध्म ज़रा करदे ।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनो को , यहीं तामीर काशी-करबला कर दे ।
भटकना गलीयों मे मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बाव्ररा कर दे ।
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन कि मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बडा कर दे।
तसव्वुर मे न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ मे दुआ कर दे ।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे जलवा दिखा कर दे ।
पतन्गों की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्ध्म ज़रा करदे ।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनो को , यहीं तामीर काशी-करबला कर दे ।
भटकना गलीयों मे मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बाव्ररा कर दे ।
जंग मे हार
जंग मे हार हर बार हो ये ज़रूरी नहीं , वक़्त हर वक़्त दुशवार हो ये ज़रूरी नहीं।
गो सिकन्दर के परिवार से है न रिश्ता पर, दिल मे पोरष का किरदार हो ये ज़रूरी नहीं।
फ़िर जलाओ च्ररागे-मुहब्बत को तरतीब से,फ़िर हवायें गुनहगार हों ये ज़रूरी नहीं ।
कश्ती जर्जर है पर पार जाना भी ज़रूरी है , गम समन्दर का बेदार हो ये ज़रूरी नहीं।
इश्क़ क़ुरबानी की खेती है सीखो परवानों से,बस उपज से सरोकार हो ये ज़रूरी नहीं।
झुकना सीखो बुजुर्गों के आगे दरख़्तों सा,हर दम ख़ुदा को नमस्कार हो ये ज़रूरी नहीं।
शमा के दिल में भी आंसुओं की नदी बहती है,ये पतंगों से इज़हार हो ये ज़रूरी नहीं।
मिल गई दीद उनकी मनेगी मेरी ईद,अब ,चांद का छ्त पे दीदार हो ये ज़रूरी नहीं।
मज़हबी नस्लें भी विशवास की भूखी हैं दानी , जंग ही उनको स्वीकार हो ये ज़रूरी नहीं।
तरतीब- ठीक से। बेदार- जाग्रित। दीद-दर्शन।
गो सिकन्दर के परिवार से है न रिश्ता पर, दिल मे पोरष का किरदार हो ये ज़रूरी नहीं।
फ़िर जलाओ च्ररागे-मुहब्बत को तरतीब से,फ़िर हवायें गुनहगार हों ये ज़रूरी नहीं ।
कश्ती जर्जर है पर पार जाना भी ज़रूरी है , गम समन्दर का बेदार हो ये ज़रूरी नहीं।
इश्क़ क़ुरबानी की खेती है सीखो परवानों से,बस उपज से सरोकार हो ये ज़रूरी नहीं।
झुकना सीखो बुजुर्गों के आगे दरख़्तों सा,हर दम ख़ुदा को नमस्कार हो ये ज़रूरी नहीं।
शमा के दिल में भी आंसुओं की नदी बहती है,ये पतंगों से इज़हार हो ये ज़रूरी नहीं।
मिल गई दीद उनकी मनेगी मेरी ईद,अब ,चांद का छ्त पे दीदार हो ये ज़रूरी नहीं।
मज़हबी नस्लें भी विशवास की भूखी हैं दानी , जंग ही उनको स्वीकार हो ये ज़रूरी नहीं।
तरतीब- ठीक से। बेदार- जाग्रित। दीद-दर्शन।
असमान से दुश्मनी
असमां से मेरी दुश्मनी नहीं है ,
मेरे घर में मगर रौशनी नहीं है।
चाँद को छत पे उतरा तो हूँ ,
साथ उसके मगर चांदनी नहीं है ।
मै खुदा बनने की कर रहाँ हूँ कोशिश ,
मेरे अंदर अभी आदमी नहीं है ।
रोज़ करता हूँ मझधार की इबादत ,
साहिलों के लिए बंदगी नहीं है ।
और की ख्वाहिश में भटक चुके हैं हम सब ,
जबकि हमको ज़रा भी कमी नहीं है। {डॉ संजय दानी दुर्ग}
मेरे घर में मगर रौशनी नहीं है।
चाँद को छत पे उतरा तो हूँ ,
साथ उसके मगर चांदनी नहीं है ।
मै खुदा बनने की कर रहाँ हूँ कोशिश ,
मेरे अंदर अभी आदमी नहीं है ।
रोज़ करता हूँ मझधार की इबादत ,
साहिलों के लिए बंदगी नहीं है ।
और की ख्वाहिश में भटक चुके हैं हम सब ,
जबकि हमको ज़रा भी कमी नहीं है। {डॉ संजय दानी दुर्ग}
मन की गली
वो उतरता ही गया दिल की नदी में ,मै तडफ़ती ही रही उसकी खुशी मे।
ढूंढ्ता ही रहा वो तन के महल को,मै घुमाती ही रही मन की गली मे।
धोखा देना,झगडा करना,बदला लेना, करें क्या क्या दो दिनों की ज़िन्दगी मे।
वो खरीदा है मुझे पैसों के दम वो ,सुकूं पाता बेबसों की बेबसी मे ।
हुस्न का मै दोस्त बनना चाहूं लेकिन ,मुझको रखना चाहती वो चाकरी मे।
ये सियासत-दान तो कच्चे घडे हैं , फूट जाते दानी पैसों की कमी मे।
ढूंढ्ता ही रहा वो तन के महल को,मै घुमाती ही रही मन की गली मे।
धोखा देना,झगडा करना,बदला लेना, करें क्या क्या दो दिनों की ज़िन्दगी मे।
वो खरीदा है मुझे पैसों के दम वो ,सुकूं पाता बेबसों की बेबसी मे ।
हुस्न का मै दोस्त बनना चाहूं लेकिन ,मुझको रखना चाहती वो चाकरी मे।
ये सियासत-दान तो कच्चे घडे हैं , फूट जाते दानी पैसों की कमी मे।
आत्म हत्या
इश्क़ भी इक खुदकुशी है , ज़िन्दगी से दुश्मनी है।
वो बडी मासूम है पर ,मुझको पागल कर चुकी है।
नींद से महरूम हूं मै , सारी दुनिया सो रही है ।
मै पतन्गा फ़िर जलूंगा , शमा की महफ़िल सजी है।
क़त्ल दिल का हो चुका है,पीठ पीछे वो खडी है ।
रुकना किस्मत मे नहीं है, ज़िन्दगी गोया नदी है।
ज़िन्दगी आखिर है क्या बस, बेबसी ही बेबसी है
वो बडी मासूम है पर ,मुझको पागल कर चुकी है।
नींद से महरूम हूं मै , सारी दुनिया सो रही है ।
मै पतन्गा फ़िर जलूंगा , शमा की महफ़िल सजी है।
क़त्ल दिल का हो चुका है,पीठ पीछे वो खडी है ।
रुकना किस्मत मे नहीं है, ज़िन्दगी गोया नदी है।
ज़िन्दगी आखिर है क्या बस, बेबसी ही बेबसी है
गांव की नदी
सूखे हुवे दरख़्त सी मेरी जवानी है , हलाकि गांव की नदी मेरी लगानी है |
दिल की गली में जंगली फूलों की खुशबू है , पर मंदिरों से दूर मेरी जिंदगानी है|
तू इश्क की ज़मीं को बदनाम कर चुकी , मेरी वफ़ा की दास्ताँ पर आसमानी है|
मै चाँद के घराने से लाया हूँ इक बहू, तहज़ीब कुछ अंधेरों की उसको सिखानी है|
जो खून अपने मुल्क के खातिर न उबले , वो आदमी का खून नहीं सिर्फ पानी है|"
14 मई को 01:48 बजे · रिपोर्ट करें
दिल की गली में जंगली फूलों की खुशबू है , पर मंदिरों से दूर मेरी जिंदगानी है|
तू इश्क की ज़मीं को बदनाम कर चुकी , मेरी वफ़ा की दास्ताँ पर आसमानी है|
मै चाँद के घराने से लाया हूँ इक बहू, तहज़ीब कुछ अंधेरों की उसको सिखानी है|
जो खून अपने मुल्क के खातिर न उबले , वो आदमी का खून नहीं सिर्फ पानी है|"
14 मई को 01:48 बजे · रिपोर्ट करें
बीती सदी
इक सुलगती हुई आँख मुझ को घूरती है, आज से नाराज़ वो बीती सदी है|
क्यों समंदर रोता है खुद की कमी पे, साहिलों से अच्छी उसकी ज़िन्दगी है|
इस बियाबान शहर को कैसे बसायें, भीड़ में भी तनहा हर एक आदमी है|
सरहदों के पार मेरा दिल गया है, अब परिंदों से मेरी भी दोस्ती है|
खौफ खता हूँ उजालों के करम से, बस अंधेरों के सफ़र में अब ख़ुशी है|
14 मई को 01:47 बजे · रिपोर्ट करें
क्यों समंदर रोता है खुद की कमी पे, साहिलों से अच्छी उसकी ज़िन्दगी है|
इस बियाबान शहर को कैसे बसायें, भीड़ में भी तनहा हर एक आदमी है|
सरहदों के पार मेरा दिल गया है, अब परिंदों से मेरी भी दोस्ती है|
खौफ खता हूँ उजालों के करम से, बस अंधेरों के सफ़र में अब ख़ुशी है|
14 मई को 01:47 बजे · रिपोर्ट करें
मां
रात के साये से जब भी डरता हूं मै ,अपनी मां को याद बेहद करता हूं मैं।
जल्द ही लोरी सुनाने वो आ जाती ,सुन के लोरी फ़िर चैन से सोता हूं मैं।
सदियों से ऐसी रिवायत चल रही है,तौरे-माज़ी हूं कभी ना बदला हूं मैं।
ज़िन्दगी भर उनको क्यूं मैंने दिया दुख, अपने इस अहसास से अब लड्ता हूं मैं।
मेरे कारण रोज़ मरती है वो जग में , उनके कारण जहां मे आया हूं मैं।
बा-अदब इक शांत दिल वाली नदी वो ,दंभ से अपने,उफ़नता दरिया हूं मैं।
पर मेरी बीबी मुझे ये कहती दानी , ऐसे बूढे बोझ को क्यूं ढोता हूं मैं।
Posted by ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι at 2:44 AM 0 comments
Labels: बीबी
Tuesday, May 18, 2010
जल्द ही लोरी सुनाने वो आ जाती ,सुन के लोरी फ़िर चैन से सोता हूं मैं।
सदियों से ऐसी रिवायत चल रही है,तौरे-माज़ी हूं कभी ना बदला हूं मैं।
ज़िन्दगी भर उनको क्यूं मैंने दिया दुख, अपने इस अहसास से अब लड्ता हूं मैं।
मेरे कारण रोज़ मरती है वो जग में , उनके कारण जहां मे आया हूं मैं।
बा-अदब इक शांत दिल वाली नदी वो ,दंभ से अपने,उफ़नता दरिया हूं मैं।
पर मेरी बीबी मुझे ये कहती दानी , ऐसे बूढे बोझ को क्यूं ढोता हूं मैं।
Posted by ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι at 2:44 AM 0 comments
Labels: बीबी
Tuesday, May 18, 2010
प्यार
प्यार
प्यार बस प्यार है दोस्तों , ज़ीस्त का सार है दोस्तों।
चांदनी बेवफ़ा है अगर , चांद की हार है दोस्तों ।
मुल्क मे मूर्खों का राज गर, ग्यान बेकार है दोस्तों।
इश्क़ के हाट मे सुख नहीं, गम का बाज़ार है दोस्तों।
मेरे मन की ये गलती नहीं,दिल गुनहगार है दोस्तों।
दोस्त हूं लहरों का,साहिलों को नमस्कार है दोस्तों ।
फ़िर शहादत पतन्गों की क्यूं,शमा गद्दार है दोस्तों।
हुस्न की चाकरी क्यूं करूं ,इश्क़ खुद्दार है दोस्तों।
गर कहे लैला जां दे दो,तो मज़नू तैयार है दोस्तों।
प्यार मजबूरी है दिल की,हम सब समझदार हैं दोस्तों।
प्यार बस प्यार है दोस्तों , ज़ीस्त का सार है दोस्तों।
चांदनी बेवफ़ा है अगर , चांद की हार है दोस्तों ।
मुल्क मे मूर्खों का राज गर, ग्यान बेकार है दोस्तों।
इश्क़ के हाट मे सुख नहीं, गम का बाज़ार है दोस्तों।
मेरे मन की ये गलती नहीं,दिल गुनहगार है दोस्तों।
दोस्त हूं लहरों का,साहिलों को नमस्कार है दोस्तों ।
फ़िर शहादत पतन्गों की क्यूं,शमा गद्दार है दोस्तों।
हुस्न की चाकरी क्यूं करूं ,इश्क़ खुद्दार है दोस्तों।
गर कहे लैला जां दे दो,तो मज़नू तैयार है दोस्तों।
प्यार मजबूरी है दिल की,हम सब समझदार हैं दोस्तों।
नक्सली वदियां
मेरे भी घर मे रहता है इक बूढा नक्सली,ना जाने क्यूं वो एक ज़माने से है दुखी।
क्या चाहिये उसे वो बताता नहीं मुझे , मैं कैसे जानूं उसको है किस चीज़ की कमी।
शायद नयी फ़िज़ाओं से उसको ग़ुरेज़ है,उसको अजीज़ ग़ुज़रे ज़माने की ज़िन्दगी ।
उपरी चमक दमक उसे बिलकुल नहीं पसन्द,वो धोती कुरता पगडी मे ही पाये खुशी।
जायज़ है उसका सोचना बदलाव किस लिये, जो तेज़ी से बदल चुके वे भी तो हैं दुखी।
ये सोचते हैं हम कि पिछ्ड सा गया है वो,वो हमको देख सोचता है ये कैसी रफ़्तगी ।
शायद ये दो विचारों का टकराव है सनम,हम गो नये ज़माने वो जाती हुई सदी ।
सम्मान उनकी ख्वाहिशों की होनी चाहिये,ना खेला जाये खेल मुसलसल सियासती ।
सरकारें उनके दर्द को समझे सलीके से , बदलाव लाने की करें ना कोई हडबडी ।
जायज़ नहीं कोई भी जबरदस्ती उनके साथ,बहती रहेगी वरना यहां खून की
क्या चाहिये उसे वो बताता नहीं मुझे , मैं कैसे जानूं उसको है किस चीज़ की कमी।
शायद नयी फ़िज़ाओं से उसको ग़ुरेज़ है,उसको अजीज़ ग़ुज़रे ज़माने की ज़िन्दगी ।
उपरी चमक दमक उसे बिलकुल नहीं पसन्द,वो धोती कुरता पगडी मे ही पाये खुशी।
जायज़ है उसका सोचना बदलाव किस लिये, जो तेज़ी से बदल चुके वे भी तो हैं दुखी।
ये सोचते हैं हम कि पिछ्ड सा गया है वो,वो हमको देख सोचता है ये कैसी रफ़्तगी ।
शायद ये दो विचारों का टकराव है सनम,हम गो नये ज़माने वो जाती हुई सदी ।
सम्मान उनकी ख्वाहिशों की होनी चाहिये,ना खेला जाये खेल मुसलसल सियासती ।
सरकारें उनके दर्द को समझे सलीके से , बदलाव लाने की करें ना कोई हडबडी ।
जायज़ नहीं कोई भी जबरदस्ती उनके साथ,बहती रहेगी वरना यहां खून की
Subscribe to:
Posts (Atom)