इश्क़ भी इक खुदकुशी है , ज़िन्दगी से दुश्मनी है।
वो बडी मासूम है पर ,मुझको पागल कर चुकी है।
नींद से महरूम हूं मै , सारी दुनिया सो रही है ।
मै पतन्गा फ़िर जलूंगा , शमा की महफ़िल सजी है।
क़त्ल दिल का हो चुका है,पीठ पीछे वो खडी है ।
रुकना किस्मत मे नहीं है, ज़िन्दगी गोया नदी है।
ज़िन्दगी आखिर है क्या बस, बेबसी ही बेबसी है
Thursday, 20 May 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment