कोई रस्ता बचा नहीं है आज, और कुछ सोचना नहीं है आज।
क़त्ल मासूमों का बहुत हो चुका, न्याय का पट खुला नहीं है आज।
पानी सर से उपर पहुंच चुका है, तिनकों का भी पता नहीं है आज्।
उनका ऐलाने-जंग हो चुका पर , अपना जज़्बा दिखा नहीं है आज्।
क्यूं सियासत नसमझे मौत का दर्द, उनका अपना मरा नहीं है आज।
न्याय, अन्याय करके मांग रहे , उनका कोई खुदा नहीं है आज्।
रावणो को न मारा जाये कभी , राम ने ये कहा नही है आज।
सांपों को पालना उचित नहीं है, ज़हर की इन्तहा नही है आज।
पकड़ो या मारो गीदड़ों को,और ,उनकी कोई सज़ा नही है आज्।
देर आये दुरुस्त आये ये , जुमला किसने सुना नही है आज।
गो अंधेरा ज़रा बढा है पर , सूर्य दानी छिपा नहीं है आज।
Monday, 31 May 2010
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