Tuesday 1 June 2010

मौत की परवाज़

तन्हाई भरी रात मे इक चिड़िये की आवाज़, गो ज़िन्दगी के बादलों में मौत की परवाज़ ।
इस दिल के मुकद्दर मे चरागों का मकां जब, क्यूं फ़िक्र करूं आंधियों की,वो रहें नाराज़।
मै सरहदों पे दोस्ती की करता हूं बातें , अपनों से लड़ाई का यही है मेरा अन्दाज़ ।
तुम जब से अमीरों की ज़मानत मे हो हमदम, ग़ुरबत की अदालत के कलम तबसे हैं नसाज़।
रावण की कहानी का मै ही लिख्ता हूं हर स्क्रिपट,मेरी ही लिखावट से मिले राम को सरताज़।
अभिमान, तुम्हे अपने महल पे है बहुत,तो मुझको भी है अपनी मता-ए-झोपड़ी पर नाज़।
तेरे लिये मैं दुनिया से लड़ सकता हूं दानी, दिल जंगे मुहब्बत मे ज़माने से है ज़ांबाज़।

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