Friday 28 May 2010

मेरी दुनिया

जब से तुमको देखा है , मरने की क्यूं इछ्छा है ।
इक नदी बौराई तू , शांत मेरा दरिया है ।
मैं पतन्गा तो नहीं , फ़िर भी मुझको जलना है।
तेरी यादें ही सनम , अब तो मेरी दुनिया है।
हमको जब माना खुदा ,हमसे फ़िर क्यूं परदा है।
दूर जब से तू गई , बज़्म मेरा तन्हा है ।
चोरी मेरी भी अदा , बस तलाशे मौक़ा है ।
धक्का देकर अपनों को,हमको आगे बढना है।
दोनों की ख्वाहिश यही , दानी से बस मिलना है।

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