Thursday 20 May 2010

मौत के नाम खत

लिख मौत के नाम का नामा तेरे घर को ढूंढता हूँ
गम से भरा क़तरा हूँ अपने समंदर को ढूंढता हूँ।
इक जीत कर जंग क्यूँ दिल अभिमान से लबरेज़ तेरा ,
मै भी शंशाह पोरुस हूँ सिकंदर को ढूंढता हूँ।
मेरे अपनों की बुलंदी मेरे ही दम से आसमान पे,
सब का मुकद्दर सजा अपने मुकद्दर को ढूंढता हूँ।
हमने जिन्हें बनाया जिनके कारन हमने की लड़ाई
यारों उसी बेजुबान मजबूर ईश्वर को ढूंढता हूँ।
जब साथ थी तवज्जो न दे सका हमसफ़र को
जब जा चुकी दूर तो उसके तसव्वुर को ढूंढता हूँ।
हर रत मैंने अंधेरों के दम से डकैती की दानी ,
घर में डकैती पड़ी तो मुनव्वर को ढूंढता हूँ।

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