Thursday 20 May 2010

मेरी दास्तां

ये सुलगते हुवे दिल की दास्तां है , मेरे रग रग मे यारो धुआं धुआं है।
दर्द गम तीरगी से सजी है महफ़िल, आज तनहाई ही मेरा पासबां है।
चांदनी का मुझे इन्तज़ार तो है ,पर घटाओं से लबरेज़ आसमां है ।
कांच का घर बनाकर परीशां हूं मै, शह्र वालों के हाथों मे गिट्टियां है।
ये मकाने मुहब्बत है तिनकों का ,पर ज़माने की नज़रों मे आंधियां है ।
ज़ख्मों की पालकी झुनझुना बजाती,मेरी गज़लों की तहरीर बे-ज़ुबां है।
ऐ ब्रितानी समन्दर बदल ले रस्ता , खूने-झांसी से तामीर कश्तियां है।
मुल्क खातिर जवानी मे बे-वफ़ा था,दौरे-पीरी ,शहादत मे मेरी हां है।
कब से बैठा हूं रिन्दगाह मे,दानी अब तो बताओ खुदा कहां है।

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