Saturday 29 May 2010

इन्सानियत

इन्सानियत इंसान की पहचान है , रावण सा रहना तो आसान है।
सारे किनारे खुदगरज़ हैं इसलिये , दिल मे समन्दर के लिये सम्मान है।
दिल से चरागों की इबादत करता हूं , अब आंधियों से जंग का ऐलान है।
गाने अदावत के नहीं गाता मैं , मुझको मिलन के गीतो का वरदान है।
मैं बन गया दरवेश तेरे प्यार मे , पर तू हवस के बाडों की ज़िन्दान है ।
तेरा भी परचम फ़हरेगा कल , हिम्मत के आगे क्या दमे-तूफ़ान है।
सारी सियासत सरहदों के खेल में , लाशे सिपाही खेल का सामान है।
सजदे खुदा को करना अच्छी बात है , लेकिन खुदा का अक्स ही इंसान है।
हर आदमी दानी बिकाऊ है यहां , ये सबसे सस्ता देश हिन्दुस्तान है।

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